मिट्टी अपने आप में महौषधि है
Benefits of soil in ayurved
आयुर्वेद शिरोमणि डा0 मनोहर दास अग्रावत एन डी ‘विद्यावाचस्पति’ प्राकृतिक चिकित्सक
मिट्टी यदि चिकनी लसदार एवं काले रंग की हो तो रोगों के शमनार्थ औषधि रूप में भी प्रयुक्त होती है। काली मिट्टी-क्षत दाहु, रक्तप्रदर व रक्त विकार, प्रदर रोग, कफ एवं पित्त को दूर करने वाली होती है।
मिट्टी अनेक रोगों में दवा के रूप में काम आती है। इसकी अनेक किस्में होती है, जिनमें चिकनी मिट्टी अधिक उपयोगी पाई गई है। काली तथा पीली दोनों प्रकार की चिकनी मिट्टी औषधि के रूप से प्रयुक्त की जा सकती है। भारतवर्ष में मिट्टी सभी जगत में आसानी से मिल जाती है। मिट्टी साफ है या नहीं देखें, प्रायः मिट्टी सफाई की हुई नहीं होती है। अतः मिट्टी में से कंकरादि निकाल दें। इसके बाद इसमें कुछ मात्रा बालू मिट्टी मिला दी जाये तो यह अच्छी तरह से चिपकने में सहायक होती है।
Benefits of soil in ayurved
आयुर्वेद शिरोमणि डा0 मनोहर दास अग्रावत एन डी ‘विद्यावाचस्पति’ प्राकृतिक चिकित्सक
मिट्टी यदि चिकनी लसदार एवं काले रंग की हो तो रोगों के शमनार्थ औषधि रूप में भी प्रयुक्त होती है। काली मिट्टी-क्षत दाहु, रक्तप्रदर व रक्त विकार, प्रदर रोग, कफ एवं पित्त को दूर करने वाली होती है।
मिट्टी अनेक रोगों में दवा के रूप में काम आती है। इसकी अनेक किस्में होती है, जिनमें चिकनी मिट्टी अधिक उपयोगी पाई गई है। काली तथा पीली दोनों प्रकार की चिकनी मिट्टी औषधि के रूप से प्रयुक्त की जा सकती है। भारतवर्ष में मिट्टी सभी जगत में आसानी से मिल जाती है। मिट्टी साफ है या नहीं देखें, प्रायः मिट्टी सफाई की हुई नहीं होती है। अतः मिट्टी में से कंकरादि निकाल दें। इसके बाद इसमें कुछ मात्रा बालू मिट्टी मिला दी जाये तो यह अच्छी तरह से चिपकने में सहायक होती है।
मिट्टी चयन करने के लिए जंगल में अथवा ऐसे स्थान में जहाँ गंदगी न हो वह स्थान उपयुक्त होता है। खेत या खेतों के आस पास की मिट्टी अशुद्ध होती है, कारण कि खेतों में रासायनिक खाद डाले जाते है। जहरीली दवाएँ फसलों पर छिड़की जाती है जिससें उस मिट्टी में अशुद्वता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। जहां से मिट्टी का चयन करें वहां से उपर की सतह फावडे़ से साफ कर लगभग दस-बारह इंच मिट्टी खोद कर हटालें फिर नीचे की शुद्ध मिट्टी संग्रह कर उपयोग में लेना चाहिए।
चिकनी मिट्टी तथा बालू मिट्टी में पानी डालकर उसे आटे की तरह गूंथना चाहिये। थोड़ी देर में यह प्रयोग के लिए तैयार की जाती है तथा एक बार प्रयोग की हुई मिट्टी पुनः प्रयोग में नहीं लानी चाहिए। ऐसी मिट्टी गुण के स्थान पर नुकसान ही करती है। यह एक प्रकार की विष हो जाती है क्योंकि उसके द्वारा अनेक घातक कीटाणु शरीर से खींच लिये जाते हैं। ऐसी मिट्टी एकान्त में डालनी चाहिए जिस से उसे कोई अनजाने में उपयोग न कर बैठे।
कुछ व्यक्तियों का यह तर्क है कि ठण्ड के दिनो में ठण्डे पानी में भिगोई हुई मिट्टी काम में नहीं लानी चाहिए, क्योंकि इसमें लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। लेखक इस तर्क से सहमत नहीं है। क्योंकि ठण्डे पानी में आटे की तरह गूंथी हुई मिट्टी को चमड़ी पर लगाने से थोड़ी ही देर मंें गर्मी से मिट्टी का पानी सूख जाता है तथा मिट्टी तड़क जाती है। इस प्रकार से इस मिट्टी में स्वयं गर्मी होती है। अतः ठण्ड के दिनों में भी इसका उपयोग किया जा सकता है लेकिन बर्फ में डाली हुई मिट्टी औषधि के रूप में कार्य में नहीं लाना चाहिए।
चर्मरोग में-
एक्ज्मिा, फोड़ाफुंसी एवं खुजली आदि चर्मरोगों में मिट्टी का लेप करने से ये रोग ठीक हो जाते हंै। फोड़ा, फुंसी, एक्जिमा या खुजली के स्थान पर उपर बताये अनुसार तैयार की गई मिट्टी आधा इंच मोटी परत चढ़ाकर छोड़ दें। जब सूखकर उसें दरार चल जाए तक उसकों तीन चार घंटे बाद उतार दें। नियमित प्रयोग से उपर्युक्त रोग ठीक हो जाते हैं।
सिरदर्द में- सिर पीड़ा में मिट्टी का लेपन करने से शांति मिलती है।
उपर्युक्त बताये अनुसार मिट्टी को तैयार करने के बाद ललाट पर इसका लेपन किया जाये तथा सिर पर तालू के उपर एक इंच मोटी परत भी चढ़ाई जा सकती है, जिससे तेज सिरदर्द में शांति मिलती है। पीड़ा समाप्त हो जाती है।
आग से जल जाना –
पीली मिट्टी पानी में घोलकर जले स्थान पर लगाने से जलन पीड़ा शांत होती है। कभी-कभी स्वतः ही हाथ पैरों की चमड़ी में जलन अनुभव होती है ऐसी स्थिति में उपर्युक्त मिट्टी का घोल हाथ पैरों पर लगाना चाहिये निश्चित आराम मिलता है।
मूत्रावरोध में-
मूत्रावरोध की अवस्था में पेडू पर मिट्टी की एक ईंच मोटी परत (मिट्टी की पट्टी) चढ़ा दें उपर कंबल का टुकड़ा ढक दें। आधा घंटे बाद इसे उतार कर पुनः मिट्टी चढ़ा दें, यह प्रयोग तब तब करते रहें जब तक पेशाब न उतर जाये। रोगी को पानी अधिक मात्रा मंे पिलाना श्रेयस्कर रहता है।
अगर इस प्रयोग से मूत्रावरोध बना रहता है तो रोगी अधिकृत चिकित्सक व्यवस्था करवानी चाहिये। अधिकांश रोगी मिट्टी से लाभान्वित हो जाते हैं। मिट्टी की पट्टी गुर्दो को काम करने की शक्ति प्रदान करती है।
रक्त प्रवाह –
यह रोग प्रायः स्त्रियों को मासिक धर्म के दिनों में हो जाता है, तीन चार दिनों तक तो प्राकृतिक स्थिति मानी गई है परन्तु क्रमशः दस दिन, पन्द्रह दिन तक यदि रक्त प्रवाह चलता रहता है तो इसे रोग माना जाता है। इसकी बड़ी सरल सफल दवा है मिट्टी।
बाजार में पंसारी या हकीमी अत्तार के यहां से 120 ग्राम मुल्तानी मिट्टी जो पीले रंग की होती है ले आईये, इसे अच्छी तरह महीन पीसकर रात्रि के समय, उसमें से 60 ग्राम किसी काँच के बर्तन में डालकर उसमंे 240 ग्राम जल मिला दीजिए।
तदन्तर किसी लकड़ी से उसे खूब मिलाकर, उसे ढक कर रख दीजिए प्रातः काल राम को रखे हुए बर्तन से निथरा जल लेकर रोगी महिला को पिला दीजिए। दूसरे दिन इसी प्रकार 30 ग्राम मुल्तानी मिट्टी तथा तीसरे दिन भी 30 ग्राम मिट्टी का निथरा हुआ जल पिलाइये, कैसा भी रक्त प्रवाह हो इससे बन्द हो जाता है।
यह अनुभूत है। इस मिट्टी के पानी के प्रयोग से स्त्री या पुरूष के पेशाब में आने वाला रक्त खून भी बंद हो जाता है। लेखक ने कई महिलाओं को इस प्रयोग से स्वस्थता निःशुल्क प्रदान की है। कई प्रकार की दवाएँ खाने के बाद जब उन्हें लाभ नहीं मिला तब लेखक के पास उनका आना हुआ।
हैजा होने पर –
हैजा की अवस्था में पेडू पर म्टिटी की पट्टी चढ़ाने से लाभ होता है।
बालों को मुलायम करने में- सिर के बालांें को मुलायम बनाने के लिए मिट्टी का उपयोग किया जाता है। मिट्टी का सि रपर लेप करके एक घण्टे बाद स्नान करने से बाल अत्याधिक मुलायम और सुन्दर हो जाते हंै। इसके लिए काली मिट्टी अधिक उपयुक्त मानी गई है। काली मिट्टी के अभाव में मुल्तानी मिट्टी पीली मिटटी भी बालों के लिए उपर्युक्त है। मिट्टी के प्रयोग से रूसी नट हो जाती है।
विषैले जन्तु के काटने पर-
विषयुक्त जन्तु ने जिस स्थान पर काटा है। वहाँ गीली मिट्टी लगा दें। इस मिट्टी द्वारा विष शोषण करने से रोगी ठीेक भी हो जाएगा। सर्प के काटने पर काटे हुए स्थान पर तुरन्त रेजर ब्लेड की सहायता से वी आकार का चीरा लगा दें जिससे रक्त के साथ विष भी निकलने लगे। काटे हुए स्थान से कुछ उपर कसकर बाँध देना चाहिए जिससे विष शरीर के अन्य भागों में न चढ़ने पाये, यह कार्य करने के पश्चात जमीन में एक गड्ढा खोद लें, यह इतना गहरा हो कि खड़ा होने पर मनुुष्य की गर्दन ही बाहर रह सके। इस गड्ढे में सर्प दंश के रोगी को कसकर बंध खोलकर नंगे बदन प्रवेश कराकर गीली मिट्टी से गड्ढा भर दंे। मिट्टी समस्त शरीर में विष को सोख लेगी। रोगी की स्थिति के अनुसार गड्ढे में रखने की अवधि 24 घण्टे भी हो सकती है।
कील मुहाँसो पर-
मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग, मुहाँसों के लिए लाभदायक होता है, जब मुहाँसे निकले तो मुल्तानी मिट्टी को पीस कर दो चम्मच मुल्तानी मिट्टी एक चम्मच नींबू का रस एक चम्मच बेसन आधा चम्मच पीसी हुई हल्दी मिलाकर आवश्यकता अनुसार ठण्डा पानी मिलाकर बना लें, मुंहासे वाली त्वचा पर सप्ताह में तीन बार लेप लगाकर आधा घण्टा लगा रहने के बाद ठण्डे पानी से धो लें, इससे त्वचा स्वस्थ व निर्मल हो जाएगी और मुंहासे खत्म हो जाएंगे।
चेहरे की त्वचा कांति और कसाब के लिए-
दो चम्मच मुल्तानी मिट्टी पिसी हुई दही में मिला कर पेस्ट बना लें और चेहरे पर लगाए, आधा घण्टा लगा रहने के बाद उसे ठण्डे पानी से धों लेे, इससे त्वचा साफ होगी, साथ ही त्वचा में कांति और कसाव भी आएगा।
तैलीय त्वचा को साफ सुथरा व स्वच्छ बनाए रखने के लिए-
दो चम्मच मुल्तानी मिट्टी, मीन चम्मच गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बना लें यदि गुलाब जल कम पड़े तो थोड़ा और मिला लें, सप्ताह में तीन बार चेहरे पर लगाएं इसके प्रयोग से कील मुंहासे दाग धब्बे आदि मिट जाएंगे। त्वचा रोग मुक्त होने से कांतिमय हो जाएगी है।
धूप में चेहरा काला पड़ने पर-
धूप में निकलने पर अक्सर चेहरे के साथ-साथ शरीर की त्वचा काली पड़ जाती है, कालापन दूर करने के लिए दो चम्मच मुलतानी मिट्टी, एक चम्मच दूध की मलाई, एक चम्मच सरसों का तेल, एक चम्मच बेसन व थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी मिलाकर आवश्यकताअनुसार थोड़ा सा पानी मिलाकर उबटन बना लें, नहाने से पहले चेहरे पर व शरीर पर लगाएं फिर रगड़ कर साफ करें, इससें झांईया कालापन, दाग धब्बे तो दूर हांेगे ही त्वचा में चमक के साथ-साथ कान्ति भी आयेगी।
केशों की खूबसूरती के लिए –
दो चमच मुलतानी मिट्टी, दो चम्मच दही, एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर अच्छी तरह से केशों की जड़ों मंे लगाए और थोडी देर बाद धो लें इससे केश मुलायम, रेशमी तथा घनें तो होंगे ही अधिक समय तक काले भी बने रहेंगे।
चिकनी मिट्टी तथा बालू मिट्टी में पानी डालकर उसे आटे की तरह गूंथना चाहिये। थोड़ी देर में यह प्रयोग के लिए तैयार की जाती है तथा एक बार प्रयोग की हुई मिट्टी पुनः प्रयोग में नहीं लानी चाहिए। ऐसी मिट्टी गुण के स्थान पर नुकसान ही करती है। यह एक प्रकार की विष हो जाती है क्योंकि उसके द्वारा अनेक घातक कीटाणु शरीर से खींच लिये जाते हैं। ऐसी मिट्टी एकान्त में डालनी चाहिए जिस से उसे कोई अनजाने में उपयोग न कर बैठे।
कुछ व्यक्तियों का यह तर्क है कि ठण्ड के दिनो में ठण्डे पानी में भिगोई हुई मिट्टी काम में नहीं लानी चाहिए, क्योंकि इसमें लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। लेखक इस तर्क से सहमत नहीं है। क्योंकि ठण्डे पानी में आटे की तरह गूंथी हुई मिट्टी को चमड़ी पर लगाने से थोड़ी ही देर मंें गर्मी से मिट्टी का पानी सूख जाता है तथा मिट्टी तड़क जाती है। इस प्रकार से इस मिट्टी में स्वयं गर्मी होती है। अतः ठण्ड के दिनों में भी इसका उपयोग किया जा सकता है लेकिन बर्फ में डाली हुई मिट्टी औषधि के रूप में कार्य में नहीं लाना चाहिए।
चर्मरोग में-
एक्ज्मिा, फोड़ाफुंसी एवं खुजली आदि चर्मरोगों में मिट्टी का लेप करने से ये रोग ठीक हो जाते हंै। फोड़ा, फुंसी, एक्जिमा या खुजली के स्थान पर उपर बताये अनुसार तैयार की गई मिट्टी आधा इंच मोटी परत चढ़ाकर छोड़ दें। जब सूखकर उसें दरार चल जाए तक उसकों तीन चार घंटे बाद उतार दें। नियमित प्रयोग से उपर्युक्त रोग ठीक हो जाते हैं।
सिरदर्द में- सिर पीड़ा में मिट्टी का लेपन करने से शांति मिलती है।
उपर्युक्त बताये अनुसार मिट्टी को तैयार करने के बाद ललाट पर इसका लेपन किया जाये तथा सिर पर तालू के उपर एक इंच मोटी परत भी चढ़ाई जा सकती है, जिससे तेज सिरदर्द में शांति मिलती है। पीड़ा समाप्त हो जाती है।
आग से जल जाना –
पीली मिट्टी पानी में घोलकर जले स्थान पर लगाने से जलन पीड़ा शांत होती है। कभी-कभी स्वतः ही हाथ पैरों की चमड़ी में जलन अनुभव होती है ऐसी स्थिति में उपर्युक्त मिट्टी का घोल हाथ पैरों पर लगाना चाहिये निश्चित आराम मिलता है।
मूत्रावरोध में-
मूत्रावरोध की अवस्था में पेडू पर मिट्टी की एक ईंच मोटी परत (मिट्टी की पट्टी) चढ़ा दें उपर कंबल का टुकड़ा ढक दें। आधा घंटे बाद इसे उतार कर पुनः मिट्टी चढ़ा दें, यह प्रयोग तब तब करते रहें जब तक पेशाब न उतर जाये। रोगी को पानी अधिक मात्रा मंे पिलाना श्रेयस्कर रहता है।
अगर इस प्रयोग से मूत्रावरोध बना रहता है तो रोगी अधिकृत चिकित्सक व्यवस्था करवानी चाहिये। अधिकांश रोगी मिट्टी से लाभान्वित हो जाते हैं। मिट्टी की पट्टी गुर्दो को काम करने की शक्ति प्रदान करती है।
रक्त प्रवाह –
यह रोग प्रायः स्त्रियों को मासिक धर्म के दिनों में हो जाता है, तीन चार दिनों तक तो प्राकृतिक स्थिति मानी गई है परन्तु क्रमशः दस दिन, पन्द्रह दिन तक यदि रक्त प्रवाह चलता रहता है तो इसे रोग माना जाता है। इसकी बड़ी सरल सफल दवा है मिट्टी।
बाजार में पंसारी या हकीमी अत्तार के यहां से 120 ग्राम मुल्तानी मिट्टी जो पीले रंग की होती है ले आईये, इसे अच्छी तरह महीन पीसकर रात्रि के समय, उसमें से 60 ग्राम किसी काँच के बर्तन में डालकर उसमंे 240 ग्राम जल मिला दीजिए।
तदन्तर किसी लकड़ी से उसे खूब मिलाकर, उसे ढक कर रख दीजिए प्रातः काल राम को रखे हुए बर्तन से निथरा जल लेकर रोगी महिला को पिला दीजिए। दूसरे दिन इसी प्रकार 30 ग्राम मुल्तानी मिट्टी तथा तीसरे दिन भी 30 ग्राम मिट्टी का निथरा हुआ जल पिलाइये, कैसा भी रक्त प्रवाह हो इससे बन्द हो जाता है।
यह अनुभूत है। इस मिट्टी के पानी के प्रयोग से स्त्री या पुरूष के पेशाब में आने वाला रक्त खून भी बंद हो जाता है। लेखक ने कई महिलाओं को इस प्रयोग से स्वस्थता निःशुल्क प्रदान की है। कई प्रकार की दवाएँ खाने के बाद जब उन्हें लाभ नहीं मिला तब लेखक के पास उनका आना हुआ।
हैजा होने पर –
हैजा की अवस्था में पेडू पर म्टिटी की पट्टी चढ़ाने से लाभ होता है।
बालों को मुलायम करने में- सिर के बालांें को मुलायम बनाने के लिए मिट्टी का उपयोग किया जाता है। मिट्टी का सि रपर लेप करके एक घण्टे बाद स्नान करने से बाल अत्याधिक मुलायम और सुन्दर हो जाते हंै। इसके लिए काली मिट्टी अधिक उपयुक्त मानी गई है। काली मिट्टी के अभाव में मुल्तानी मिट्टी पीली मिटटी भी बालों के लिए उपर्युक्त है। मिट्टी के प्रयोग से रूसी नट हो जाती है।
विषैले जन्तु के काटने पर-
विषयुक्त जन्तु ने जिस स्थान पर काटा है। वहाँ गीली मिट्टी लगा दें। इस मिट्टी द्वारा विष शोषण करने से रोगी ठीेक भी हो जाएगा। सर्प के काटने पर काटे हुए स्थान पर तुरन्त रेजर ब्लेड की सहायता से वी आकार का चीरा लगा दें जिससे रक्त के साथ विष भी निकलने लगे। काटे हुए स्थान से कुछ उपर कसकर बाँध देना चाहिए जिससे विष शरीर के अन्य भागों में न चढ़ने पाये, यह कार्य करने के पश्चात जमीन में एक गड्ढा खोद लें, यह इतना गहरा हो कि खड़ा होने पर मनुुष्य की गर्दन ही बाहर रह सके। इस गड्ढे में सर्प दंश के रोगी को कसकर बंध खोलकर नंगे बदन प्रवेश कराकर गीली मिट्टी से गड्ढा भर दंे। मिट्टी समस्त शरीर में विष को सोख लेगी। रोगी की स्थिति के अनुसार गड्ढे में रखने की अवधि 24 घण्टे भी हो सकती है।
कील मुहाँसो पर-
मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग, मुहाँसों के लिए लाभदायक होता है, जब मुहाँसे निकले तो मुल्तानी मिट्टी को पीस कर दो चम्मच मुल्तानी मिट्टी एक चम्मच नींबू का रस एक चम्मच बेसन आधा चम्मच पीसी हुई हल्दी मिलाकर आवश्यकता अनुसार ठण्डा पानी मिलाकर बना लें, मुंहासे वाली त्वचा पर सप्ताह में तीन बार लेप लगाकर आधा घण्टा लगा रहने के बाद ठण्डे पानी से धो लें, इससे त्वचा स्वस्थ व निर्मल हो जाएगी और मुंहासे खत्म हो जाएंगे।
चेहरे की त्वचा कांति और कसाब के लिए-
दो चम्मच मुल्तानी मिट्टी पिसी हुई दही में मिला कर पेस्ट बना लें और चेहरे पर लगाए, आधा घण्टा लगा रहने के बाद उसे ठण्डे पानी से धों लेे, इससे त्वचा साफ होगी, साथ ही त्वचा में कांति और कसाव भी आएगा।
तैलीय त्वचा को साफ सुथरा व स्वच्छ बनाए रखने के लिए-
दो चम्मच मुल्तानी मिट्टी, मीन चम्मच गुलाब जल मिलाकर पेस्ट बना लें यदि गुलाब जल कम पड़े तो थोड़ा और मिला लें, सप्ताह में तीन बार चेहरे पर लगाएं इसके प्रयोग से कील मुंहासे दाग धब्बे आदि मिट जाएंगे। त्वचा रोग मुक्त होने से कांतिमय हो जाएगी है।
धूप में चेहरा काला पड़ने पर-
धूप में निकलने पर अक्सर चेहरे के साथ-साथ शरीर की त्वचा काली पड़ जाती है, कालापन दूर करने के लिए दो चम्मच मुलतानी मिट्टी, एक चम्मच दूध की मलाई, एक चम्मच सरसों का तेल, एक चम्मच बेसन व थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी मिलाकर आवश्यकताअनुसार थोड़ा सा पानी मिलाकर उबटन बना लें, नहाने से पहले चेहरे पर व शरीर पर लगाएं फिर रगड़ कर साफ करें, इससें झांईया कालापन, दाग धब्बे तो दूर हांेगे ही त्वचा में चमक के साथ-साथ कान्ति भी आयेगी।
केशों की खूबसूरती के लिए –
दो चमच मुलतानी मिट्टी, दो चम्मच दही, एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर अच्छी तरह से केशों की जड़ों मंे लगाए और थोडी देर बाद धो लें इससे केश मुलायम, रेशमी तथा घनें तो होंगे ही अधिक समय तक काले भी बने रहेंगे।
0 Comments