संस्कृत में एक उक्ति है – ‘‘जगाम चेंतु जगती पलांडु’’ अर्थात ंसंसार मंे प्याज का आगमन उसके द्वारा संसार को विजय करने के लिए ही हुआ है। भाव यह है कि प्याज में इतने अत्युत्तम गुण है, जिनके द्वारा वह समस्त संसार पर अपना प्रभुत्व जमाने की क्षमता रखता है। डॉ पट्टाभिसीतारा मैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘फेदर्स एण्ड स्टोन्स’ में लिखा है कि अठारह पुराणों से तो हम सभी परिचित है पर गुजरात में एक उन्नीसवीं पुराण भी है उसका नाम है ‘कांदा पुराण’ कांदा यानी ‘प्याज पुराण’
प्याज को संस्कृत मे – पलाण्डु, हिन्दी में प्याज, मारवाड़ी मे- कांदो, बंगाली में प्याज, पंजाबी मंे- गंडा, वस्सत, सिंधी में बसर डगरी, मराठी में-कांदा, गुजराती में, डमुली, कांदा, तमिल वेल्ल बेगजम, अंग्रेजी में आनियन (वदपवद) लेटिन में- ऐलियम सेप (।ससपनउममचं) नाम से पुकारा जाता है।
प्याज एक अच्छे किस्म के आहार और सद्यः फल दायक औषधि दोनों का कार्य समान रूप से करता है। आहार और औषधि गुण के अतिरिक्त प्याज में एक तीसरा विशिष्ट गुण है- मानव को अनुपम सौंदर्य प्रदान करने तथा उसके शरीर को संगठित बनाने का।
संस्कृत साहित्य में एक प्राचीन विवरण है कि एक समय शकों के रााजा के जीवन प्याज के उपरअवलंबित था। शक जाति की स्त्रियों का अनुपम सौंदर्य और सुंदर शारीरिक गठन का निर्माण करने में प्याज मुख्य चीज थी। नित्यप्रति प्याज के सेवन से शक ललनाओं को गोरी मुल्लयम गालें चन्द्रमा की कांति को भी बात करती थी।
उपयोगिता और मान्यता
शक्ति का स्रोत होना प्याज का चौथा विशेष गुण है। प्राचीन काल में केवल शक्ति प्राप्त करने के लिए प्याज का इतना उपयोग किया जाता था कि अन्य किसी भी वस्तु का नहीं, प्राचीन मिश्रवासी अपने मजदुरो को शक्ति प्रदान करने के लिए उन्हें प्याज खूब खिलाते थे।
मिस्र के प्रसिद्ध पिरामिड़ों पर काम करने वाले मजदूरों ेके लिए उस समय प्याज खरीदन के लिए नोटन (करीब ढ़ाई सो मन) सोना (स्वर्ण) खर्च हुआ था। ऐसा यूनानी विद्वान-हेरो डोटस ने लिखा है। ‘चियोप्स’ के पिरामिड के एक शिलालेख के अनुसार यह पिरामिड बीस वर्षो में बना और उसके निर्माण में तीन लाख साठ हजार आदमी काम करते रहे जिनको स्वस्थ रखने के लिए एक करोड, अस्सी लाख रूपयो के लगभग प्याज, गाजर और लहसुन खरीदा गया था।
प्राचीन काल केे मिस्रियो की भांति यूनानियोंने भी प्याज को बहुत महत्व दिया था, युनान में- डोकारोड डिस नाम का एक सुप्रसिद्ध चिकित्सक (हकीम) हुआ है वह बवासीर में प्याज को तेल में पीसकर, नेत्र रोगों में शहद के साथ तथा पगाल कुत्तें के काटने पर उसे सिरके के साथ प्रयोग करता था। ‘सुकरात’ तो प्याज को निश्चित रूप से शक्ति और साहस को बढ़ाने वाला मानता था।
युनानी तिब (चिकित्सा) में एक नारा दिया गया था-
‘‘प्याज से कायम है दुनिया की सेहत।’’
फ्रांस के डॉक्टर डाल्के ने सन् 1912 में प्याज पर एक थीसिस छपवाई थी, उस थीसिस मंे जलोदर रोग से पीडि़त कितने रोगियों को अधिक मात्रा में प्याज खिला कर उन्हें चंगा कर देने की बात बड़े जोरदार शब्दों में लिखी है।
प्याज का सत्व जिसमें सल्फाइडस की अनेक किस्मंे होती है, शरीर में होने वाली किसी भी गठन का विकास रोकने में सक्षम है। रूस क जॉर्जिया प्रांत में जहाँ विडालिया किस्म का का प्याज पैदा होता है वहां के निवासियों में पेट में होने वाला कैंसर अमेरिकी नागरिकों की तुलना में आधा भी नहीं है।
चीन में प्याज और लहसुन सबसे अधिक खाया जाता है उनकी कोई भी डिश बिना प्याज या लहसुन के नहीं पुरी होती। यही वजह है कि वहाँ पेट के कैंसर का जीविम दूसरे देशों की तुलना में चालीस प्रतिशत कम है। डच देशों में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन डेढ़ प्याज खाया जाता है वहां पेट के कैंसर की घटनाएँ नगण्यश् होती है।
साधारण तौर पर प्याज की दो जातियां होती है एक सफेद और एक लाल। लाल प्याज की महक बहुत तेज होती है व सफेद की हल्की होती है। सफेद प्याज भारी, वीर्य उत्पन्न करता है,, रक्तदोष, वमन,(उल्टी) व भूख की कमी को दूर करने वाला तथा स्वादिष्ट होता है। लाल प्याज तीक्ष्ण, गर्म, पेट की कृमि को नष्ट करने वाला बवासीर तथा वायु विकार को दूर करने वाला है। सभ्यता के आरंभ से ही जिन सब्जियो की खेती होती चली आ रही है उनमें प्याज भी एक प्रमुख है।
निहीत तत्व-
प्याज एक ऐसा खाद्यपदार्थ है जिसमें उत्तम स्वास्थ्य के लिए लगभग सभी उपयोगी विटामिन तथा खनिज लवण आदि पौष्टिक तत्व एक साथ उपलब्ध होते है।
प्याज में पानी 86.8 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 0.4 प्रतिशत, प्रोटीन 1.2 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 11.6 प्रतिशत, कैल्शियम 0.8 प्रतिशत, फॉस्फोरस 0.05, लोहा 0.07 मिलिग्राम प्रति 100 ग्राम, वसा 0.1 प्रतिशत, विटामिन ‘बी’ 40 आई0यू0 प्रति 100 ग्राम कैरोटीन 51 आई0यू0 प्रति 100 ग्राम, थियामिन 120 माइक्रोग्राम तथा विटामिन ‘सी’ 11 मिलिग्राम प्रति 100 ग्राम, नियासिन 0.4 से 0.6 प्रतिशत, रिबोफ्लेविन 10 माइकोग्राम होता है।
एक औंस प्याज में हमें 17 कैलोरीज गर्मी मिलती है, प्याज को अधिक देर तक आग पर रखने से उसमें स्थित विटामिन नष्ट हो जाते हैं अतः प्याज से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए उसे कच्चा खाना चाहिए।
आयुर्वेद के आचार्यों ने प्याज को वातनाशक, उष्णवीर्य, स्वल्प पित्त कारक, बल, वीर्य, अग्निवर्धक, स्निग्ध, धातुओं को स्थिर करने वाला, कफकारक, पुष्टिकर, मधुर, रक्त पिक्त पाशक और पिच्छिल कहा है। प्याज स्वास्थ्यवर्धक और रोग नाशक के साथ-साथ सौंदर्यवर्धक है, यह त्वचा को शुद्ध करता है, बदन को चिकना करता तथा गोरा और कांतिमय बनाता है। प्याज का औषधि गुण उसके उड़नशील और तीखे गंधयुक्त तेल में निहीत होता है जो उसके रस में ओतप्रोत रहता है।
लंदन की प्रसिद्ध डॉक्टरी पत्रिका-लेन सेट में मिनशिन ने लिखा है कि प्याज का रस शरीर पर आक्रमण करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देता है, इसलिये जो प्याज जितना ही अधिक गंध युक्त हो उसे उतना ही लाभकारी समझना चाहिए। बड़े प्याज की अपेक्षा छोटे प्याज में गंध अधिक होती है।
प्याज को उचित मात्रा में प्रतिदिन सेवन करते रहने से खाया हुआ भोजन शीघ्र पच जाता है। भूख खुलकर लगती है, इसके खाते रहने से विभिन्न स्थानों में तथा विदेशों में पानी कष्ट नहीं देता अर्थात् विदेशों का खानपान स्वास्थ्य के प्रतिकूल नहीं पड़ने पाता है।
प्याज के अधिक सेवन से अनिद्रा रोग, नींद में बुरे स्वप्न आना तथा शरीर में खून की कमी का रोग आदि शीध्र दूर हो जाते हैं।
प्याज दस्तावर, उत्तेजक, कृमिनाशक तथा रक्तशोधक है, प्याज में टूटे हुए स्थान को जोड़ने की विलक्षण शक्ति है, यह कंठ को साफ करता है, आँखों को लाभदायक है, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है, बीमारी तथा बुढ़ापे को दूर करता है, अर्थात् रसायन है इससे बुद्धि भी तीव्र होती है।
प्याज का टुकड़ा घर में रखने से वहाँ साँप आदि विषैले जीवों का प्रवेश नहीं हो पाता। कमीज अथवा कोट की जेब में प्याज रखकर घर से बाहर निकलने पर सख्त गर्मी के दिनों में ‘लू’ लगने का डर नहीं रहता है।
अब तक साँप द्वारा काटे जाने के समाचार मिलते रहे हैं लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार बाड़मेर तथा जेसलमेर (राजस्थान) जिले के समीपवर्ती क्षेत्रों में एक ऐसे किस्म का साँप भी पाया जाता है जो अपनी साँस द्वारा ही आदमी की जान ले लेता है।
उक्त पीवणां नामक जाति का यह साँप रात्रि में सोये हुए आदमी की छाती पर चढ़कर बैठ जाता है तथा ज्यों-ज्यों आदमी सांस लेता है वह आदमी की नाक पर अपना मुंह लगाकर जहरीली सांस छोड़ता रहता है, जिसके कारण आदमी कुछ देर बाद ही बेहोशी में रहने के बाद सदा के लिए बेहोश हो जाता है। इस क्षेत्र के लोगों के अनुसार इस साँप से बचाव के लिए अधिकांश लोग ‘प्याज (कांदा)’ अपने पास रखकर सोते हैं।
कुछ प्रयोग-
प्याज के इतने सारे प्रयोग हैं कि उन्हें लिखा जाये तो एक स्वतंत्र पुस्तक का निर्माण हो सकता है। यहाँ केवल कुछ प्रयोग दिये जा रहे हैं:-
1- मोतियाबिन्द (आँख का रोग) पर – सफेद प्याज का रस 10 ग्राम, शहद 10 ग्राम, भीम सेनी कपूर 2 ग्राम , इन तीनों को अच्छी तरह से मिलाकर शिशी में रख लें, रात को सोते समय दो-दो बूंद आंखों में ड्रापर द्वारा टपकाने से प्रांरभिक मोतिया बिन्द शीघ्र ही रूक जाती है और यदि उतरा हुआ है तो भी मिट जाता है। केवल शहद और प्याज के रस से भी काम चलायाइजा सकता है। मोतिया बिन्द का रामबाण इलाज है।
(2 ) मोतियाबिन्द का पानी उतरने के थोडे ही दिनों बाद सफेद प्याज का ताजा रस दो तीन बूंद प्रतिदिन नियमित रूप से आंखो में डालते रहना चाहिए, ऐसा करने से मोतिया बिंद का बढ़ना रूक जायेगा और जो बन चुका है वह धीरे-धीरे कट जायेगा।
(3) रतौंध (रात को दिखाई न देना) पर- केवल प्याज का स्वरस आंखो में डालने से रतौंध रोग मिट जाता है और पुनः रात्रि में दिखना शुरू हो जाता है।
(4) आवाज बन्द पर – अगर किसी व्यक्ति की आवाज अक्समात बन्द हो जाये तो उसे प्याज का रस दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह पुनः बोलने लगेगा।
(5) कान दर्द पर प्याज- प्याज के बीच की कली का स्वरस निकाल कर उसे थोडा गर्म कर के जिस कान में दर्द हो, उस कान में वह रस दो-तीन बूंद ड्रापर से टपकायें एक-दो दिन ऐसा करने से कान का दर्द अवश्य दूर हो जाता है।
(6) कान से पीप बहने पर- जिस कान से पीप बहती हो उस को रूई की फुलेरी से साफ करके फिर प्याज के स्वरस (रस) की तीन-चार बूंद (ताजा रस निकाल कर) टपका देना चाहिए। पुराने रोग में अधिक दिनों तक यह प्रयोग करना चाहिए।
(7) कान में सांय- सांय की आवाजें आने पर- प्याज के रस में रूई का तरफाया कान में रखने से कान के ये दोष दूर हो जाते है।
(8) नाक से खून बहने पर- शरीर गरम हो जाने के कारण नाक से रक्त निकालने लगता है इसे नकसीर नाम से भी पुकारा जाता है। प्याज के रस की दो बूंद नाक से खींचने से रक्त का बहना रूक जाता है।
(9) सिरदर्द पर – सिरदर्द यदि जुकाम के कारण हो तो तीन बूंद प्याज का रस नाक से खींचने से तत्काल आराम मिलता है।
(10) रूकामूत्र और कष्ट पर- प्याज का रस और 50 ग्राम मिश्री एक साथ पिलाने से रूका हुआ मुत्र खुल जाता है। प्याज का काढ़ा (प्याज के टुकड़ों को उबाल छान कर) मिश्री डाल कर पीने से कष्ट आता पिशाब तथा पिशाब (मूत्र) हो, दोनों में लाभ होता है।
(11) खूनी व बादी का बवासिर (अर्श रोग) पर- प्याज के रस में घी और चीनी (शक्कर) मिलाकर खाने से बवासीर ठीक हो जाता है। एक चम्मच प्याजका रस और इतना ही पानी मिलाकर पा्रतः पियें।
(12) पथरी पर- प्याज का रस 20 ग्राम प्रतिदिन सुबह पीने से पथरी टूट जाती है और गल कर पेशाब में बाहर बह जाती है।
(13) कब्जियत पर- कब्ज तोडनें के लिए प्याज का नियमित सेवन (भोजन के साथ कच्चा प्याज खाना) बड़ हित कारी और कब्ज नाशक है।
(14) दस्त साफ न होने पर- दस्त होने के बाद भी यह लगता है कि पेट साफ नहीं हुआ है तो दो छोटे चम्मच प्याज का रस और दो छोटे चम्मच गरम पानी मिलाकर पीने से यह शिकायत दुर हो जाती है।
(15) मूत्र न रोक पाने की अक्षमता पर- पेशाब लगने पर इसे रोकना मुश्किल हो तो एक छोटा चम्मच प्याज का रस रोजाना पन्द्रह दिनों तक सेवन करें।
(16) पीलिया रोग व रक्त हीनता में- प्रतिदिन प्रातः प्याज के रस में शहद में 2-3 चम्मच पीने से पीलिया रक्त हीनता में लाभ होता है। भोजन के साथ कच्चा प्याज अधिक खाने से भी अच्छा लाभ मिलता है।
(17) हैजा होने पर- प्याज का रस 20 से 30 ग्राम तक एक-एक घण्टे के अंतर से रोगी को पिलाने से रोगी मृत्यु से बच जाता है।
(18) हिस्टेरिया और बेहोशी में – हिस्टेरिया का दौरा पड़ने पर बेहोशी की हालत हो जाती है तब प्याज का रस सुघाना चाहिए अथवा एक बंद नाक में डाल देनी चाहिए, ऐसा करने से रोगी को होश आ जाएगा और दौरा समाप्त हाक जाएगा। महिलाओं में यह रोग हो जाता है।
(19) बिगड़ा मासिक धर्म- कच्चे प्याज का नियमित सेव स्त्रियोंके बिगड़े मासिक धर्म को ठीक कर देता है। रात को सोते समय 50 ग्राम प्याज का रस गर्म करके पीने मंें मासिक धर्म खुल जाता है।
(20) हिचकी बन्द न होने पर- लगभग 15 बूंद प्याज का रस थोडे से पानी में मिलाकर दो-तीन बार पिलाने से हिचकी आना रूक जाता है।
(21) बल वीर्य की वृद्धि के लिए- यदि पुरूषों में बल वीर्य की कमी हो, कमजोरी हो तो ऐसी हालत में उसे प्याज के रस में शहद मिलाकर 10 ग्राम के करीब प्रातः प्रतिदिन पीना चाहिए ऐसा कुछ दिनों तक करने से नामर्दी दूर होकर काम शक्ति असाधारण रूप से बढ़ जाती है और मर्दानगी आ जाती है।
‘आयुर्वेद शिरोमणि’ डॉ मनोहर दास अग्रावत एन0डी0 विद्यावाचस्पति (प्राकृतिक चिकित्सक)
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