जब एक युवक के प्रश्न ने बटुकेश्वर दत्त को हैरान कर दिया : Azad Indian

Batukeshwar Dutt interesting story


आपका परिचय राष्ट्र के उन महान बलिदानियों से करवायाजा रहा है जो राष्ट्र-मन्दिर में स्वतंत्रता देवी की आराधना करते हुए मस्त होेकर अपने सिरों की भेंट चढ़ा गये।

जिनको अपने परिवार की अपेक्षा देश के करोड़ों परिवारों के दुःख दर्द परेशान करते थे। जो देश में स्वराज्य ही नहीं, अपितु सुराज्य भी स्थापित करना चाहते थे। जिनका उद्येश्य केवल अंग्रेजों को ही भगाना नहीं था, अपितु प्रत्येक प्रकार की शोषकवृत्ति की मिटाना था, जो राष्ट्र की उन्नति में बाधक हों।

पर देश आजाद होने पर भी लार्ड माउण्ट बैब्न को भारत का गर्वनर जरनल बनाने वाले नायकों ने उन दानियों के बलिदान को तो भुलाया ही, उनके सिद्धांतो को भी गहरे गर्त में दबा दिया, जिन पर चलकर राष्ट्र विश्व का अगवा बन सकता था।

वीर भगतसिंह के साथ असेम्बली हाल में बम फंेककर गिरफतार हुए बटुकेश्वर दत्त आजीवन कारावास की सजा भोगने अण्डमान (कालापानी) गये और 1938ई0 में वहाँ से मुक्त होकर 1942 से 1946 तक फिर जेल भोगी।

भगतसिंह की माँ का यह धर्मपुत्र एक बार दिल्ली उस जेल को देखने गया, जहाँ गिरफतारी के बाद भगतसिंह के साथ उन्हें रखा गया था। उन्होंने देखा कि उस स्थान पर एक अस्पताल बनाया जा रहा है और उनकी कोठरी के स्थान पर खेल का एक छोटा सा मैदान था, जहाँ कुछ युवक-युवतियाँ बैडमिंटन खेल रहे थे।

जब उनका खेल समाप्त हो गया, तो एक युवक ने उनसे पूछा- ‘‘आप हमें खेलते हुए देख रहे थे, क्या आप भी इस खेल में रूचि रखते हैं?

दत्तजी ने उत्तर दिया-‘‘ मैं इस खेल में रूचि तो नहीं रखता; पर मैं इस मैदान को इसलिए देख रहा था, क्योंकि किसी समय इसी स्थान पर जेल की वह कोठरी थी, जहाँ असेम्बली भवन में बम विस्फोट करने के पश्चात्् भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को रखा गया था।’’

दत्त जी की बात सुनकर युवक ने उनसे प्रश्न किया -‘‘ ये भगतसिंह और बटुकेश्वर कौन थे? ’’

उस युवक का यह प्रश्न सुनकर दत्तजी की समझ में यह नहीं आया कि वे उस युवक के प्रश्न का क्या उत्तर दें। वे सोचने लगे कि यह पीढ़ी क्या करके दिखाएगी, जो अभी से भूल गई है कि भगतसिंह और बटुकेश्वर कौन थे।

प्रेरणा शहीदों से हम अगर नहीं लेगे,
आजादी ढलती हुई साँझ हो जायेगी।
वीरों की पूजा यदि हम नहीं करेंगे,
तो सच मानो वीरता बाँझ हो जायेगी।।

इस देश को पराधीनता की बेड़ियों से छुड़ाकर स्वर्ग बनाने के लिए जो वीर नरक (कालापानी) के यात्री बने, उनमेें से कई तो वहीं से मुक्तिपथ के पथिक बन गये और कईयों ने वहाँ का आँखों देख हाल लेखनी बद्ध कर देशवासियों को उस नरक से परिचित कराया और साथ ही देवों को अमृतघट दिलाने के लिए स्वयं विषपान करने वाले शंकर की तरह वहाँ की यातनाओं को सहन करने वाले हुतात्माओं से भी परिचित कराया; क्योंकि वे सब तो लेखक नहीं थे।

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