दमा का दमन कीजिए आयुर्वेदिक दवाईंयों से I Asthma Treatment Ayurveda

दमा या तमक श्वास अस्थमा एक ऐसी जिद्दी बिमारी है, जो रोगी को मारती कम, तड़फाती ज्यादा है। हमारी आधुनिक जीवन शैली बदले हुुए खान-पान और प्रदूषण की वजह से दिन ब दिन दमा के रोगियों की तादाद बढ़ती ही जा रही है, जोे कि चिन्ता का विषय है Asthma Treatment  Ayurved।
हमारे दोनों फेफड़ों में वायु पहुँचाने वाली नलियाँ छोटी छोटी माँसपेशियांे से बनी हैं। जब किसी कारणवश इनमें संकुचन पैदा होता है, रोगी का गला साँय-साँय करने ल
गता है। इसी अवस्था को तमक श्वास या दमा या अस्थमा कहते हैं।
यह बिमारी दो तरह की होती है- स्पेज्पोडिक (अकड़न या आक्षेप के साथ) और दूसरी ब्राँकियल वायु उपनली सम्बन्धी दोंनों ही स्थितियांे में वायु नलिकाओं की राह सँकरी पड़ जाती है। अक्सर रोगी साँस तो सहज भाव से ले लेता है, लेकिन साँस छोड़ने मंे काफी तकलीफ होती है। दमा से तो दम नहीं निकलता, लेकिन तकलीफ दम निकलने से कम नहीं होता।
इसका रोगी बहुत दिन जीता है, यानी दीर्घायु होता है। दमा के रोगी सभी अस्वस्थ नहीं रहते। दौरा पड़ने पर बहुत ज्यादा कष्ट तो होता, पर दमा का जोर कम पड़ जाने पर वह स्वस्थ हो जाता है। अधिकांशतः देखा गया है कि अमावस्या या पूर्णिमा के दिन बिमारी बढ़ती है। नया दौरा 3-4 दिन रहकर प्रायः घट जाता है।
किसी-किसी रोगी को दमा का दौरा जल्दी-जल्दी यहाँ तक कि हर महीने में एक दो बार होता है और किसी किसी को 8-10 महीने मंे एक बार। जिन्हें जल्दी जल्दी दौरा पड़ता है, उन्हें आगे चलकर हार्ट सम्बन्धी बिमारी या शोथ ;कतवचेलद्ध आदि बिमारियाँ हो जाती हैं।
आम तौर पर प्रौढ़ों को यह रोग हुआ करता है। अधिकांश को तो यह अपने बाप-दादों से प्राप्त होता है, यानी खानदानी होता है। बच्चों को प्रायः यह रोग उन्हें कुकुर खाँसी होने के बाद या उनके खसरा से ग्रस्त होने के बाद होता है। यह रोग जब नया होता है, तो दौरा ज्यादा-ज्यादा समय पर पड़ता है, लेकिन पुराना होने पर जल्दी-जल्दी पड़ने लगता है। बुढ़ापे में तो यह रोग कुछ ज्यादा ही सताता है, और इसे ठीक करना नामुमकिन तो नहीं, बेहद कठिन जरूर है।
दमा होने के प्रमुख कारण:
धूल के कणांे से, धुएँ से, ठण्डे पानी, दही व चावल के अधिक सेवन से, कफ बढ़ाने वाला, देरी से पचने वाला भोजन करने आदि कारणों से दमा रोग हो सकता है।
अन्य कारण:
पहला भोजन हजम न हुआ हो, उस पर फिर भोजन कर लेना, तेल में तले हुए एवं जल में रहने वाले प्राणियों के माँस का सेवन करने व मौसम बदलने से भी यह रोग हो जाता है।
दमे के लक्षण:
स रोगी बार-बार बहुत जोर से, लेकिन कष्ट के साथ साँस लेता है। गले में साँय-साँय आवाज होती है।
स बोलने में तकलीफ होती है, हाँफता है। रोगी कष्ट के साथ धीरे-धीरे साँस लेकर रुक-रुक कर बोल पाता है, वह भी छोटे-छोटे।
स कफ बाहर निकालने के प्रयास में बार-बार खाँसी के वेग होते हैं।
स रोगी की आँखों के आगे अन्धेरा छा जाता है।
स रोगी को लेटने से तकलीफ बढ़ जाती है और दोनों हाथों पर भार देकर या तकिये का सहारा लेकर झुककर बैठने पर उसे कुछ राहत मिलती है।
स रोगी के माथे पर पसीना आ जाता है और आँखें बाहर की ओर निकलती हुई प्रतीत होती हैं। उसका मुख सूखता है।
  1. हिदायतें और इलाज:
    दमे के रोगी को रात का भोजन सूर्यास्त से पहले ही कर लेना चाहिए।
    पीने के लिए हमेशा गर्म जल का प्रयोग करना चाहिए।
    मौसम के दिनों में गाजर का रस प्रतिदिन एक किलो की मात्रा में चालीस दिन तक पीना चाहिए।
    कूलर एवं ए0सी0 के प्रयोग से परहेज करना चाहिए।
    तिल, तेल व सैन्धव नमक मिलाकर गर्म कर छाती पर मलने से आराम मिलता है।
    5 मि0लि0 सरसों के तेल में पुराना गुड़ पीसकर चाटने से आशानुकूल लाभ मिलता है।
    1 ग्राम शुद्ध गंधक का देसी घी के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन इस रोग में लाभ पहुंचाता है।
    एक बताशे में एक से दो बूँद थोहर के दूध में मिलाकर खाने से छाती में फँसा बलगम आसानी से निकल जाता है।
    कच्ची मूली को छाया में सुखाकर उसे जलाकर उसकी भस्म एक-एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
    नारियल की जटा को चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमे के वेग से राहत मिलती है।
    हल्दी की गाँठ को शुद्ध घी में भूनकर चूसने से दमे से राहत महसूस होती है।
    पीपल के फलों का चूर्ण 3-3 ग्राम की मात्रा में शहर के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
    दमा का दौरा पड़ने पर रोगी के पैर गर्म पानी में रखवाकर कुछ देर उसे बैठाये रखें। इससे दौरे का वेग कम हो जाता है।
    दौरे के समय गर्मागर्म दूध, चाय या पानी रोगी को पिलाना उचित होता है।
    छोटी पीपल का चूर्ण शहद के साथ चाटने से दमे में फायदा होता है।
    वंशलोचन, छोटी इलायची के बीच और मुलैठी का चूर्ण शहद के साथ चाटने से दमा के दौरे का वेग कम होता है।
    फिटकरी का पाउडर दस या पन्द्रह ग्रेन की मात्रा में जीभ पर रख देने से दमे के दौरे में फायदा होता है।
    तारपीन का तेल या गन्धक या थोड़ा नमक, खूब गरम पानी में डालकर उसकी भाप लेने से भी दौरा शांत हो जाता है।
    एक तश्तरी में कुछ ब्लाॅटिंग पेपर बिछाकर उस पर थोड़ा शोरा रखकर ब्लाॅटिंग पेपरों को जलायें। उससे उठने वाले धुंयें की गंध लेना भी दमा के रोगी के लिए लाभकारी है।
    बहेड़े के चूर्ण को शहद के साथ चाटना दमे में लाभकारी है।
    च्यवनप्राश, द्राक्षासव व कनकासव का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।
  2. दमे के रोगी ये चीजें खायें:
    दमे के रोगी को अपने आहार में पुराने चावल, गेहूँ, जौ, बाजरा, मूँग, टिण्डे, तुरई, लौकी, परवल, पालक, मेथी, बथुआ, गाजर, मूली, चैलाई, सहिजन की फली, अदरक, कच्ची हल्दी, पपीता, चीकू, अनार, सेब का सेवन करना चाहिए। रात के समय जहाँ तक संभव हो, हल्का भोजन करना चाहिए और सूर्यास्त के बाद कोई भी चीज चबाकर नहीं खाना चाहिए।
  3. चे चीजें न खायें:
    छोटी मटर, लोबिया, बादाम, नारियल, उड़द की दाल, दही, मीठा, तला, कच्चा, ठण्डा और भारी भोजन, ब्रेड, पनीर आदि खमीर उठाकर बनाये गये खाद्य पदार्थ, गेहूँ, तिल तेल, केला, तरबूज, दूध से बनी चीजें, आइसक्रीम और ठण्डे पेय पदार्थ-कोल्ड ड्रिंक्स वगैरह।
  4. स्नान सम्बन्धी कुछ सावधानियाँ:
    स्पैज्मोडिक ऐज्मा (आक्षेपिक दमा) वाले इच्छानुसार रोज स्नान कर सकते हैं, लेकिन जिन्हें ब्राँकियल ऐज्मा है, उन्हें इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि सर्दी न लग जाये। ऐसे रोगी खुले में या ठण्डे पानी में स्नान न करें। सर्दी के मौसम में बंद कमरे के अंदर गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर सीना और पीठ छोड़कर बाकी शरीर अच्छी तरह से पोंछ लें। ‘कटि-स्नान’ दमा के रोगियों के लिए फायदेमंद है।
  5. आयुर्वेदिक औषधियाँ:
    श्वास कुठार रस, श्वास कास, चिन्तामणि रस, जयमंगल रस, मल्लसिन्दूर, रस सिन्दूर, शंखमल्लयोग, चित्रक हरीतकी, अगस्त्यहरीतकी, वासावलेह, कनकासव, कण्टकार्यवलेह इत्यादि कुछ औषधियाँ हैं, जिनका प्रयोग इस रोग में फलदायी होता है।
    दमा के रोगियों को यह जान लेना चाहिए कि उनका इलाज सिर्फ औषधि सेवन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सही खान-पान व परहेज रखने में है।
-डाॅ0 अनूप कुमार गक्खड़
एम0डी0 (आयुर्वेद)

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