वीर छत्रपति शम्भा जी

इतिहास का ठुकराया हीरा- वीर छत्रपति शम्भा जी
(11 मार्च बलिदान दिवस पर विशेष रूप से प्रचारित)
वीर शिवाजी के पुत्र वीर शम्भा जी---- का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। आप वीर शिवाजी के साथ अल्पायु में औरंगजेब की कैद में आगरे के किले में बंद भी रहे थे। आपने 11 मार्च 1689 को विरगति प्राप्त की थी।

इस लेख के माध्यम से हम शम्भा जी के जीवन बलिदान की घटना से धर्म रक्षा की प्रेरणा ले सकते हैं. इतिहास में ऐसे उदहारण विरले ही मिलते है।
औरंगजेब के जासूसों ने सुचना दी की शम्भा जी इस समय आपने पांच-दस सैनिकों के साथ वारद्वारी से रायगढ़ की ओर जा रहे है। - - - - - शीघ्र ही मराठा रणबांकुरों को बंदी बना लिया गया। शम्भा जी व कवि कलश को लोहे की जंजीरों में जकड़ कर मुकर्रब खान के सामने लाया गया। वह उन्हें देखकर खुशी से नाच उठा। दोनों वीरों को बोरों के समान हाथी पर लादकर मुस्लिम सेना बादशाह औरंगजेब की छावनी की और चल पड़ी।।
औरंगजेब को जब यह समाचार मिला तो वह ख़ुशी से झूम उठा। उसने चार मील की दूरी पर उन शाही कैदियों को रुकवाया। वहां शम्भा जी और कवि कलश को रंग बिरंगे कपडे और विदूषकों जैसी घुंघरूदार लम्बी टोपी पहनाई गयी। फिर उन्हें ऊंट पर बैठा कर गाजे बाजे के साथ औरंगजेब की छावनी पर लाया गया। औरंगजेब ने बड़े ही अपशब्द शब्दों में उनका स्वागत किया। शम्भा जी के नेत्रों से अग्नि निकल रही थी परन्तु वह शांत रहे। उन्हें बंदी ग्रह भेज दिया गया। औरंगजेब ने शम्भा जी का वध करने से पहले उन्हें इस्लाम काबुल करने का न्योता देने के लिए रूह्ल्ला खान को भेजा।
नर केसरी लोहे के सींखचों में बंद था।। कल तक जो मराठों का सम्राट था। आज उसकी दशा देखकर करुणा को भी दया आ जाये।। फटे हुए चिथड़ों में लिप्त हुआ उनका शरीर मिटटी में पड़े हुए स्वर्ण के समान हो गया था।मानो उन्हें स्वर्ग में खड़े हुए छत्रपति शिवाजी टकटकी बंधे हुए देख रहे थे। पिता जी पिता जी वे चिल्ला उठे- मैं आपका पुत्र हूँ। निश्चित रहिये। मैं मर जाऊँगा लेकिन…..
लेकिन क्या शम्भा जी …रूह्ल्ला खान ने एक और से प्रकट होते हुए कहां।
तुम मरने से बच सकते हो शम्भा जी परन्तु एक शर्त पर।
शम्भा जी ने उत्तर दिया में उन शर्तों को सुनना ही नहीं चाहता। शिवाजी का पुत्र मरने से कब डरता है।
लेकिन जिस प्रकार तुम्हारी मौत यहाँ होगी उसे देखकर तो खुद मौत भी थर्रा उठेगी शम्भा जी- रुहल्ला खान ने कहा।
कोई चिंता नहीं , उस जैसी मौत भी हम हिन्दुओं को नहीं डरा सकती। संभव है कि तुम जैसे कायर ही उससे डर जाते हो। शम्भा जी ने उत्तर दिया।
लेकिन… रुहल्ला खान बोला वह शर्त है बड़ी मामूली। तुझे बस इस्लाम कबूल करना है। तेरी जान बक्श दी जाएगी।।
शम्भा जी बोले बस रुहल्ला खान आगे एक भी शब्द मत निकालना मलेच्छ। रुहल्ला खान अट्टहास लगाते हुए वहाँ से चला गया।
उस रात लोहे की तपती हुई सलाखों से शम्भा जी की दोनों आँखे फोड़ दी गयी उन्हें खाना और पानी भी देना बंद कर दिया गया।
आखिर 11 मार्च को वीर शम्भा जी के बलिदान का दिन आ गय। सबसे पहले शम्भा जी का एक हाथ काटा गया, फिर दूसरा, फिर एक पैर को काटा गया और फिर दूसरा पैर।। शम्भा जी कर पाद विहीन धड़ दिन भर खून की तल्य्या में तैरता रहा। फिर सायकाल में उनका सर काट दिया गया और उनका शरीर कुत्तों के आगे डाल दिया गया।। फिर भाले पर उनके सर को टांगकर सेना के सामने उसे घुमाया गया और बाद में कूड़े में फेंक दिया गया।
मराठों ने अपनी छातियों पर पत्थर रखकर आपने सम्राट के सर का इंद्रायणी और भीमा के संगम पर तुलापुर में दांह संस्कार कर दिया गया।। आज भी उस स्थान पर शम्भा जी की समाधी है जो पुकार पुकार कर वीर शम्भा जी की याद दिलाती है कि हम सर कटा सकते है पर अपना प्यारे वैदिक धर्म कभी नहीं छोड़ सकते।
मित्रों शिवाजी के तेजस्वी पुत्र शंभाजी के अमर बलिदान यह गाथा हिन्दू माताएं अपनी लोरियों में बच्चो को सुनाये तो हर घर से महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे महान वीर जन्मेंगे।। इतिहास के इन महान वीरों के बलिदान के कारण ही आज हम गर्व से अपने आपको श्री राम और श्री कृष्ण की संतान कहने का गर्व करते है। आईये आज हम प्रण ले हम उसी वीरों के पथ के अनुगामी बनेगे।

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