Poem : Bharat ko Bharat Rehne do
ठहरो इंडिया कहने वालो, भारत को भारत रहने दो,
यदि भला चाहते हो अपना, गंगा को सीधा बहने दो।
भारत के लिए मंगल पांडे, शोणित की भाषा बोला था,
नाना की बेटी मैनावती, का भी तो बासन्ती चोला था।
इसी माता के लिए हजारों, हँसकर चढ़ गये फाँसी पर,
कितने वीर कुर्बानी दे गये, मेरठ, ग्वालियर झाँसी पर,
तांत्या, कुंवर, नाना, बहादुर, तुलाराम, झाँसी की रानी,
अपने सिरों की भेंट दे गये, नाहर से अद्भुत वे दानी।
रामसिंह कूका, बिरसा मूंडा, कितने ही बलवन्त फड़के थे,
जिनकी सिंह गर्जना सुन दिल अंग्रेजों के धड़के थे।
माँ का चीर हरण होता देख, चापेकर बंधु बढ़े आगे,
मिस्टर रैण्ड को मार गिराया, सोये वीर भारत के जागे।
‘भारत माता’ दल को नेता, अजीत सिंह सूफी प्रसाद,
अभिनव भारत सावरकर का, माता का हरता विषाद।
सतावन के समर के लिए, सावरकर ने उगली ज्वाला थी,
इसीलिए तो माता के बल, सजी मुण्डो की माला थी।
दुश्मन के घर जा धींगड़ा ने, दागी भारत की गोली थी,
हँसते-हँसतेे फाँसी चढ़, जय भारत माँ की बोली थी।
इसी धुन में अजीत सिंह, बरसो रहे वनवासी थे,
रास बिहारी, हरदयाल, पाल, भी क्या कम सन्यासी थे।
श्चीन्द्रनाथ ने इस चमन के, थे पेड रक्त से सींचे,
प्रत्येक वीर शपथ लेता था, जा चित्तौड दुर्ग के नीचे।
अवध बिहारी करतार सराभा, कन्हाई दत्त औ काशीराम,
गैंदालाल, गणेश शंकर, प्रफुल्ल चाकी से पुष्प ललाम।
सतावन का दाग धो दिया, बब्बर खालसा वीरों ने,
शोणित से किया तर्पण माँ का, सोहन से रणधीरों ने।
भारत में शतबार जन्म के, इच्छुक बिस्मिल लहरी थे,
खुदीराम अशफाक व रोशन, इसके सज पहरी थे।
साइमन कमीशन भारत छोड़ो, यूँ पंजाब केसरी दहाड़ा था,
राजगुरू सुखदेव भगत ने, ब्रिटिश का तख्त उखाड़ा था।
वीर आजाद ने रक्त बहाया था, भारत माँ के पसीने पर,
शत्रु के सौ-सौ वार सहे, अपने फौलादी सीने पर।
आजाद थे आजाद रहेंगे यह कह शेखर ललकारा था
जब पार्क में अंग्रेजों ने छल कपट से मारा था
भगवती चरण दुर्गाभाभी, बाल मुकुन्द से बलिदानी,
जिनके सुख माँ को अर्पित थे, और हुई अर्पित जवानी।
खून के बदले मिले आजादी, कह नेता जी हँूकारे थे,
‘जय हिन्द’ का लगा नारा, लडे माँ के राज दुलारे थे।
माँ की भक्ति में रंगे हुए, वे पागल थे दीवाने थे,
गौरे शत्रु से टकाराने को, हरदम सीना ताने थे।
भारत माँ के लिए हू गूँजा, ‘वन्दे मातरम्’ नारा था,
‘अंग्रेंजो भारत छोडो’ यह बच्चा बच्चा ललकारा था।
अगणित हीरे सजे हुए हैं, माता की सुन्दर माला में,
उन भूलों का नमन करूँ मैं, लो मिट गये वधशाला में।
देश पर मरने वाला वीर, जय भारत माँ की बोला था,
हर्दय में ज्वाला धधकी थी, हर वीर बना बमगोला था,
आजादी मिलते ही हमने, वीरो की माँ को भुला दिया,
लार्ड मैकाले के सपनो का, भारत को इंडिया’ बना दिया।
इंडिया ले गया आजादी को, बंदी अभी तक भारत है,
बिगड चुकी है भाषा-भूषा, चरित्र हुआ यहाँ गारत है।
धूल भरा हीरा है भारत, इंडिया रहे आसमानों में,
भारत के तन पर फटे चीथडे, इंडिया विदेशी परिधानों में।
चील और कव्वे का भोजन, खाने लगे इंडिया के लोग,
धर्म मोक्ष सब छूट गये, सबाके लगा पैसे का रोग।
भारत लड़ता आतंकवाद से, इण्डिया करता समझौते,
यदि समय पर जाग जाते तो, पाक के मालिक हम होते।
वह देश धरा से मिट जाता है, भूले जो अपने बलिदान,
निज संस्कृति भाषा-भूषा का, जिसको नहीं तनिक अभिमान।
इसीलिए कहता हूँ सुन लो- ओ इंडिया के मतवालो,
भारत को भारत रहने दो, घर में विषधर मत पालो।
युगों युगो से चलती आई, धारा कभी न सूखेगी,
ऋषि संस्कृति के हत्यारो, पीढ़ी तुम कर थूकेगी।
ठहरो इंडिया कहने वालो, भारत को भारत रहने दो,
यदि भला चाहते हो अपना, गंगा को सीधा बहने दो।
भारत के लिए मंगल पांडे, शोणित की भाषा बोला था,
नाना की बेटी मैनावती, का भी तो बासन्ती चोला था।
इसी माता के लिए हजारों, हँसकर चढ़ गये फाँसी पर,
कितने वीर कुर्बानी दे गये, मेरठ, ग्वालियर झाँसी पर,
तांत्या, कुंवर, नाना, बहादुर, तुलाराम, झाँसी की रानी,
अपने सिरों की भेंट दे गये, नाहर से अद्भुत वे दानी।
रामसिंह कूका, बिरसा मूंडा, कितने ही बलवन्त फड़के थे,
जिनकी सिंह गर्जना सुन दिल अंग्रेजों के धड़के थे।
माँ का चीर हरण होता देख, चापेकर बंधु बढ़े आगे,
मिस्टर रैण्ड को मार गिराया, सोये वीर भारत के जागे।
‘भारत माता’ दल को नेता, अजीत सिंह सूफी प्रसाद,
अभिनव भारत सावरकर का, माता का हरता विषाद।
सतावन के समर के लिए, सावरकर ने उगली ज्वाला थी,
इसीलिए तो माता के बल, सजी मुण्डो की माला थी।
दुश्मन के घर जा धींगड़ा ने, दागी भारत की गोली थी,
हँसते-हँसतेे फाँसी चढ़, जय भारत माँ की बोली थी।
इसी धुन में अजीत सिंह, बरसो रहे वनवासी थे,
रास बिहारी, हरदयाल, पाल, भी क्या कम सन्यासी थे।
श्चीन्द्रनाथ ने इस चमन के, थे पेड रक्त से सींचे,
प्रत्येक वीर शपथ लेता था, जा चित्तौड दुर्ग के नीचे।
अवध बिहारी करतार सराभा, कन्हाई दत्त औ काशीराम,
गैंदालाल, गणेश शंकर, प्रफुल्ल चाकी से पुष्प ललाम।
सतावन का दाग धो दिया, बब्बर खालसा वीरों ने,
शोणित से किया तर्पण माँ का, सोहन से रणधीरों ने।
भारत में शतबार जन्म के, इच्छुक बिस्मिल लहरी थे,
खुदीराम अशफाक व रोशन, इसके सज पहरी थे।
साइमन कमीशन भारत छोड़ो, यूँ पंजाब केसरी दहाड़ा था,
राजगुरू सुखदेव भगत ने, ब्रिटिश का तख्त उखाड़ा था।
वीर आजाद ने रक्त बहाया था, भारत माँ के पसीने पर,
शत्रु के सौ-सौ वार सहे, अपने फौलादी सीने पर।
आजाद थे आजाद रहेंगे यह कह शेखर ललकारा था
जब पार्क में अंग्रेजों ने छल कपट से मारा था
भगवती चरण दुर्गाभाभी, बाल मुकुन्द से बलिदानी,
जिनके सुख माँ को अर्पित थे, और हुई अर्पित जवानी।
खून के बदले मिले आजादी, कह नेता जी हँूकारे थे,
‘जय हिन्द’ का लगा नारा, लडे माँ के राज दुलारे थे।
माँ की भक्ति में रंगे हुए, वे पागल थे दीवाने थे,
गौरे शत्रु से टकाराने को, हरदम सीना ताने थे।
भारत माँ के लिए हू गूँजा, ‘वन्दे मातरम्’ नारा था,
‘अंग्रेंजो भारत छोडो’ यह बच्चा बच्चा ललकारा था।
अगणित हीरे सजे हुए हैं, माता की सुन्दर माला में,
उन भूलों का नमन करूँ मैं, लो मिट गये वधशाला में।
देश पर मरने वाला वीर, जय भारत माँ की बोला था,
हर्दय में ज्वाला धधकी थी, हर वीर बना बमगोला था,
आजादी मिलते ही हमने, वीरो की माँ को भुला दिया,
लार्ड मैकाले के सपनो का, भारत को इंडिया’ बना दिया।
इंडिया ले गया आजादी को, बंदी अभी तक भारत है,
बिगड चुकी है भाषा-भूषा, चरित्र हुआ यहाँ गारत है।
धूल भरा हीरा है भारत, इंडिया रहे आसमानों में,
भारत के तन पर फटे चीथडे, इंडिया विदेशी परिधानों में।
चील और कव्वे का भोजन, खाने लगे इंडिया के लोग,
धर्म मोक्ष सब छूट गये, सबाके लगा पैसे का रोग।
भारत लड़ता आतंकवाद से, इण्डिया करता समझौते,
यदि समय पर जाग जाते तो, पाक के मालिक हम होते।
वह देश धरा से मिट जाता है, भूले जो अपने बलिदान,
निज संस्कृति भाषा-भूषा का, जिसको नहीं तनिक अभिमान।
इसीलिए कहता हूँ सुन लो- ओ इंडिया के मतवालो,
भारत को भारत रहने दो, घर में विषधर मत पालो।
युगों युगो से चलती आई, धारा कभी न सूखेगी,
ऋषि संस्कृति के हत्यारो, पीढ़ी तुम कर थूकेगी।
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