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लेकिन उस सारे के बावजूद भी हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे अधिकांश नेता गांधी जी के नाम का प्रयोग वोटों की राजनीति के तौर पर करते हैं। दिल्ली में राजघाट पर हमारे नेता तब आते हैं जब कोई विदेशी मेहमान वहां जाता है, या फिर जब उनका शहीदी दिवस हो या फिर जब हमारे नेताओं ने कोई विरोध प्रदर्शन करना हो तभी व गांधी जी की समाधि पर जाते हैंे वरना वे गांधी जी के उसूलों पर अमल करने की बिल्कुल परवाह नहीं करते। महात्मा गांधी ने जिस स्वदेशी आंदोलन के बलबूते पर खादी ग्रामोद्योग को उतारा उसके बदले में हमारे में यहां जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने पैर पसार रही हैं और हमारे विदेशों पर निर्भरता बढ़ती ही नहीं जा रही बल्कि गांव छोटे तथा घरेलू उद्योग भी नष्ट हो रहे हैं वह गांधीवाद को एक बहुत बड़ा झटका है। गांधी जी हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे तथा उन्हें अनुसूचित तथा पिछड़ी जाति के लोगों के उद्धार की बहुत चिन्ता थी लेकिन आजकल जिस तरह इस प्रकार के लोगों को आरक्षण देने की बात कहकर जातिवाद का वोटों का राजनीति का खेल खेला जा रहा है उससे गांधी जी के विचारों की अदनेखी हो रही हैं। आज गांधी जी के सरलता, सत्यता तथा अहिंसा के विचारों का कोई खरीददार नहीं। ना ही आज की दुनिया में कोई ब्रह्मचर्य की पालना करता हुआ दिखाई दे रहा है। गांधी जी आजादी के बाद रामराज्य लाना चाहते थे लेकिन आजाी के 65 साल बीत जाने के बाद हमारे यहां जिस तरह गरीबी, बेकारी, असमानता, हिंसा, चिकित्सा तथा पीने के पानी की समस्या, आतंकवाद, चोरी, बलात्कार, हत्या, हिसां, कुपोषण, प्रदुषण वगैरह बढ़ रहे हैं उसमें तो राम राज्य की परछाई भी नहीं दिखती। हमारे शासक जनकल्याण के बदले में स्वकल्याण तथा भ्रष्ट तंत्र का शिकार हुए हैं। वे संविधान को तोड़ मरोड़कर तथा अपने ही ढंग से इसकी व्याख्या करकेे सत्तसिंहासन पर बने रहना चाहते है। गांधी जी ने बेशक अंग्रेजों को यहां से भगया दिया था लेकिन फिर भी अंग्रेजी भाषा के दीवाने बनकर अपनी गुलाम मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करके अपने देश के बदले विदेशों में बसना ज्यादा पसंद करते हैं। लोग बात-2 पर झूठ बोलते है। तुच्छ लाभ के लिए झुठी कस्में खाते है। लोगों की धूम्रपाण, मदिरापान तथा परस्त्रीगमन की आदत गांधीवाद से मेल नहीं खाती । पूछा जा सकता है कि देश में जो व्यापत भ्रष्टाचार है उसे किस किस्म का गांधीवाद कहा जाएगा। नेता लोग साधारण जीवन तथा उच्च विचारों का तिलांजलि देकर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते है। छोटे तथा लघु ग्रामीण उद्योगों के बदले में भारी तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के द्वारा चलाये जाने वाले उद्योगो को बढ़ावा देने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी, गरीबी, असमानता को बढ़ावा मिल रहा है। गांवो के लोग जीवन यापन के लिये शहरों में जा रहे है। लिंगानुपात बिगड़ रहा है। विज्ञापनों के द्वारा औरतों की छवि बिगड़ रही है। महिलाओं पर अत्याचार बदस्तूर जारी हैं। 30 जनवरी, 1948 को एक सिरफिरे व्यक्ति, नत्थू राम गोडसे ने गांधी जी को दिल्ली के बिरला मन्दिर में इसीलिए गोलियां चलाकर मार डाला था क्योंकि उसे गांधी जी के विचार पसंद नहींे थे। लेकिन भारत में जिस तरह गांधी जी के विचारों तथा नीतियों की अनदेखी तथा अवमानना हो रही है, अगर नत्थू राम गोडसे जीवित होता तो वह यही कहता, ‘लोगों मैंने गांधी को नहीं मारा’ आप तो उन्हें रोज़ रोज़ मार रहे हो।
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