मासिक ‘चांद’ के फांसी अंक (1928) में कई नई और पुरानी पीढ़ी के क्रांतिकारियों के जीवन परिचय छपे। लेखक के स्थान पर छद्म नाम थे-बलवंत सिंह नटवर, कृष्ण मोहन, अज्ञात आदि। ये सभी रचनाएं महान क्रांतिकारी भगत सिंह द्वारा लिखी गई थी।
नैशनल कालेज लाहौर, यशपाल भगत सिंह सहपाठी थे। यशपाल में लिखने की प्रवृत्ति बचपन से थी। भगत सिंह ने एक बार कुछ चीजें लिखकर, यशपाल को दिखाई पर उन्हें प्रकाशित नहीं कराया। उन्हीं दिनों ‘दि हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ में भगत सिंह भगवतीचरण वोहरा, सुखदेव और यशपाल शामिल हुए। इस संगठन के खुले कार्यक्रमांें में एक यह था कि प्रत्येक प्रांत से एक साप्ताहिक पत्र निकाला जाए और उसकी सहायता से स्वाधीनता तथा प्रजातंत्र की बातों का प्रचार किया जाए। गोपनीय गतिविधियों में एक योजना यह थी कि गुप्त रीति से एक छापेखाने की स्थापना की जाए और उसकी सहायता से ऐसे साहित्य का प्रकाशन किया जाए जिसका प्रकाशन खुले रूप से संभव नहीं है। भगत सिंह ने एक विप्लवी पत्रकार बनने का प्रयास आरम्भ कर दिया था परन्तु आश्चर्य, दोनों कार्यक्रम आर्थिक कठिनाईयों केे कारण पूरी तरह क्रियान्वित नहीं हो सके।
1925 में लाहौर से भगत सिंह के विरूद्ध एक गिरफ्तारी वांरट निकाला था, लेकिन वे पहले से ही सावधान थे। लाहौर से भाग कर दिल्ली पहुंचे। प्राध्यापक जयचन्द्र विद्यालंकार जो उनके शिक्षक और क्रांतिकारी दल के निर्देशक थे, ने एक पत्र हिन्दी दैनिक ‘वीर अर्जुन’ के सम्पादक इंद्र जी के नाम दिया था। इसी आधार पर भगत सिंह ने ‘वीर अर्जुन’ के सम्पादकीय विभाग में कुछ दिनों तक काम किया। वे हिन्दी और उर्दू मंें अच्छा लिख लेते थे। ‘वीर अर्जुन’ के दीनानाथ सिद्धांतलंकार जो सम्पादन विभाग में थे, ने भगत सिंह के पत्रकार जीवन और उनके मानवीय गुणों का निम्नानुसार वर्णन किया है-
‘‘भगत सिंह मितभाषी और बडे़ अध्ययनशील थे। खाली समय में और रात को प्रायः राजनीतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक पुस्तके पढ़ते। विवाद कभी नहीं करते। समाचार तैयार करने के काम में चुस्त थे। साम्प्रदायिक दंगों के समय मैंने उनमें अद्भुत स्फूर्ति देखी। वे चांदनी चौक की दोनांे पटरियों पर आमने सामने मरने-मारने पर उतारू भीड़ को समझाने बुझाने निर्भयतापूर्वक चले जाते थे। मैं उन्हे रोकता तो कहते ‘‘देशवासियों की सेवा में अगर मेरी जान भी चली जाए, तब भी चिंता की कोई बात नहीं। दंगे के दिनों में कई बार मैं कार्यालय जाने का साहस नहीं कर सका, पर वे पूरी निश्चिन्तता के साथ चले जाते थे और अपने साथ मेरा काम भी कर आते थे। एक दिन रात में कोई बारह बजे मेरी आंख खुली। वे सिसकियां भर-भर कर रो रहे थे। मैंने उन्हंे धीरज बंधाया और रोने का कारण पूछा तो बहुत देर चुप रहने के बाद बोले’’ मातृभूमि की इस दुर्दशा को देखकर मेरा दिल छलनी हो रहा है। एक ओर विदेशियों के अत्याचार है, दूसरी ओर भाई-भाई का गला काटने को तैयार है। इस हालत में ये बध्ंान कैसे कटंेगे?
दिल्ली मंेे वापसी के पश्चात लाहौर में नवजात भारत सभा की स्थापना मेें भगत सिंह ने पूरा योगदान दिया। इस सभा का वास्तविक उद्देश्य भारत में विपल्व कराना था। संस्था के खुले मंच में इसकेे सदस्य जनता को शिक्षित करने का काम करते थे। इस मंच के लिए लेख, पै्रस विज्ञप्ति बयान आदि विभिन्न पत्रों को देने का काम भगत सिंह करते थे।
अपने विवाह से इंकार करने के बाद वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल की सलाह पर कानपुर आ गए। शचीन्द्र ने उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी सम्पादक ‘प्रताप’ के पास भेजा था। उस समय विद्यार्थी जी को मालूम नहीं था कि बलंवत सिंह नामक वह नवयुवक प्रसिद्ध देशभक्त सरदार किशन सिंह के घराने का कुलदीपक भगत सिंह है। कानपुर में पहले अखबार बेचने का काम उन्होंने किया। बाद में प्रताप के सम्पादकीय विभाग में काम करने लगे। विद्यार्थी जी उनके साहित्य गुरू थे। कानपुर में उनका अध्ययन जारी रहा । डिकेन्स, मार्क्स, विक्टर ह्युगो, हालिंकन, टॉलस्टाय, गांेर्की, लेनिन, रोमारोला की पुस्तकें उनके अध्ययन के विषय थे। भारतीय लेखकों में तिलक, टैगोर अरविन्द, विवेकानन्द को वो चाव से पढ़ते थे। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास उनका प्रिय विषय था। कानपुर के प्रताप तथा प्रभा दिल्ली के महारथी। इलाहाबाद के छद्म नामों से उनके लेख छपते रहे। वे गुरूमुखी मंे भी लिखते थे। राष्ट्रवादी लेखकों और सम्पादकों के प्रति, उनके मन में सम्मान था। परन्तु मत विभिन्नता होने पर अपनी बात के समर्थन करने से नहीं चूकते थे। एक बार मार्डन रिव्यू केे महान् सम्पादक रामानंद चटर्जी ने अपने पत्र में इंकलाब जिंदाबाद नारे को हिंसावादी करार देते हुए टिप्पणी लिखी। इसका उत्तर भगत सिंह ने अंग्रेजी में ही दिया।
‘‘क्रांति का अर्थ स्थिति और बदलने की तीव्र इच्छा शक्ति और उसके आदेशों के लिए जूझने की भावना है।’’ शहीदे आजम भगत सिंह ने फांसी के चढ़ने के पूर्व अपने बयान के द्वारा, न्यायालय को, ब्रिटिश शासन के विरूद्ध, क्रांतिकारी उद्देश्यों का प्रचार का मंच बना दिया। इस तरह राष्ट्रवादी तथा विदेशी समाचार पत्रों ने भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को विश्वव्यापी लोकप्रियता प्रदान की।
कमला प्रसाद यादव
नैशनल कालेज लाहौर, यशपाल भगत सिंह सहपाठी थे। यशपाल में लिखने की प्रवृत्ति बचपन से थी। भगत सिंह ने एक बार कुछ चीजें लिखकर, यशपाल को दिखाई पर उन्हें प्रकाशित नहीं कराया। उन्हीं दिनों ‘दि हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ में भगत सिंह भगवतीचरण वोहरा, सुखदेव और यशपाल शामिल हुए। इस संगठन के खुले कार्यक्रमांें में एक यह था कि प्रत्येक प्रांत से एक साप्ताहिक पत्र निकाला जाए और उसकी सहायता से स्वाधीनता तथा प्रजातंत्र की बातों का प्रचार किया जाए। गोपनीय गतिविधियों में एक योजना यह थी कि गुप्त रीति से एक छापेखाने की स्थापना की जाए और उसकी सहायता से ऐसे साहित्य का प्रकाशन किया जाए जिसका प्रकाशन खुले रूप से संभव नहीं है। भगत सिंह ने एक विप्लवी पत्रकार बनने का प्रयास आरम्भ कर दिया था परन्तु आश्चर्य, दोनों कार्यक्रम आर्थिक कठिनाईयों केे कारण पूरी तरह क्रियान्वित नहीं हो सके।
1925 में लाहौर से भगत सिंह के विरूद्ध एक गिरफ्तारी वांरट निकाला था, लेकिन वे पहले से ही सावधान थे। लाहौर से भाग कर दिल्ली पहुंचे। प्राध्यापक जयचन्द्र विद्यालंकार जो उनके शिक्षक और क्रांतिकारी दल के निर्देशक थे, ने एक पत्र हिन्दी दैनिक ‘वीर अर्जुन’ के सम्पादक इंद्र जी के नाम दिया था। इसी आधार पर भगत सिंह ने ‘वीर अर्जुन’ के सम्पादकीय विभाग में कुछ दिनों तक काम किया। वे हिन्दी और उर्दू मंें अच्छा लिख लेते थे। ‘वीर अर्जुन’ के दीनानाथ सिद्धांतलंकार जो सम्पादन विभाग में थे, ने भगत सिंह के पत्रकार जीवन और उनके मानवीय गुणों का निम्नानुसार वर्णन किया है-
‘‘भगत सिंह मितभाषी और बडे़ अध्ययनशील थे। खाली समय में और रात को प्रायः राजनीतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक पुस्तके पढ़ते। विवाद कभी नहीं करते। समाचार तैयार करने के काम में चुस्त थे। साम्प्रदायिक दंगों के समय मैंने उनमें अद्भुत स्फूर्ति देखी। वे चांदनी चौक की दोनांे पटरियों पर आमने सामने मरने-मारने पर उतारू भीड़ को समझाने बुझाने निर्भयतापूर्वक चले जाते थे। मैं उन्हे रोकता तो कहते ‘‘देशवासियों की सेवा में अगर मेरी जान भी चली जाए, तब भी चिंता की कोई बात नहीं। दंगे के दिनों में कई बार मैं कार्यालय जाने का साहस नहीं कर सका, पर वे पूरी निश्चिन्तता के साथ चले जाते थे और अपने साथ मेरा काम भी कर आते थे। एक दिन रात में कोई बारह बजे मेरी आंख खुली। वे सिसकियां भर-भर कर रो रहे थे। मैंने उन्हंे धीरज बंधाया और रोने का कारण पूछा तो बहुत देर चुप रहने के बाद बोले’’ मातृभूमि की इस दुर्दशा को देखकर मेरा दिल छलनी हो रहा है। एक ओर विदेशियों के अत्याचार है, दूसरी ओर भाई-भाई का गला काटने को तैयार है। इस हालत में ये बध्ंान कैसे कटंेगे?
दिल्ली मंेे वापसी के पश्चात लाहौर में नवजात भारत सभा की स्थापना मेें भगत सिंह ने पूरा योगदान दिया। इस सभा का वास्तविक उद्देश्य भारत में विपल्व कराना था। संस्था के खुले मंच में इसकेे सदस्य जनता को शिक्षित करने का काम करते थे। इस मंच के लिए लेख, पै्रस विज्ञप्ति बयान आदि विभिन्न पत्रों को देने का काम भगत सिंह करते थे।
अपने विवाह से इंकार करने के बाद वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल की सलाह पर कानपुर आ गए। शचीन्द्र ने उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी सम्पादक ‘प्रताप’ के पास भेजा था। उस समय विद्यार्थी जी को मालूम नहीं था कि बलंवत सिंह नामक वह नवयुवक प्रसिद्ध देशभक्त सरदार किशन सिंह के घराने का कुलदीपक भगत सिंह है। कानपुर में पहले अखबार बेचने का काम उन्होंने किया। बाद में प्रताप के सम्पादकीय विभाग में काम करने लगे। विद्यार्थी जी उनके साहित्य गुरू थे। कानपुर में उनका अध्ययन जारी रहा । डिकेन्स, मार्क्स, विक्टर ह्युगो, हालिंकन, टॉलस्टाय, गांेर्की, लेनिन, रोमारोला की पुस्तकें उनके अध्ययन के विषय थे। भारतीय लेखकों में तिलक, टैगोर अरविन्द, विवेकानन्द को वो चाव से पढ़ते थे। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास उनका प्रिय विषय था। कानपुर के प्रताप तथा प्रभा दिल्ली के महारथी। इलाहाबाद के छद्म नामों से उनके लेख छपते रहे। वे गुरूमुखी मंे भी लिखते थे। राष्ट्रवादी लेखकों और सम्पादकों के प्रति, उनके मन में सम्मान था। परन्तु मत विभिन्नता होने पर अपनी बात के समर्थन करने से नहीं चूकते थे। एक बार मार्डन रिव्यू केे महान् सम्पादक रामानंद चटर्जी ने अपने पत्र में इंकलाब जिंदाबाद नारे को हिंसावादी करार देते हुए टिप्पणी लिखी। इसका उत्तर भगत सिंह ने अंग्रेजी में ही दिया।
‘‘क्रांति का अर्थ स्थिति और बदलने की तीव्र इच्छा शक्ति और उसके आदेशों के लिए जूझने की भावना है।’’ शहीदे आजम भगत सिंह ने फांसी के चढ़ने के पूर्व अपने बयान के द्वारा, न्यायालय को, ब्रिटिश शासन के विरूद्ध, क्रांतिकारी उद्देश्यों का प्रचार का मंच बना दिया। इस तरह राष्ट्रवादी तथा विदेशी समाचार पत्रों ने भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को विश्वव्यापी लोकप्रियता प्रदान की।
कमला प्रसाद यादव
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