Bhagat Singh Revolutionary Leader
यह जन्मजात क्या चीज है? क्या सचमुच इसका कुछ अर्थ है? या यह बोल चाल का एक मुहावरा ही है?
अमुक आदमी जन्मजात कवि है, अमुक आदमी जन्मजात लेखक है, अमुक अदमी जन्मजात वैज्ञानिक है, इस तरह के वाक्य बहुतों के साथ जोडे गए हैं, पर इनका सार क्या है?
यह प्रश्न महत्वपुर्ण है। इस महत्व को प्रश्न से साफ-साफ अनुभव कर यकते हैं कि क्या कोई व्यक्ति अपने जन्म से पहले भी कुछ सीख सकता है? किसी प्रकार की मनोवृत्ति अपने नन्हे से मानस में ग्रहण कर सकता है?
भारत के दर्शन ने इसका उत्तर दियश है-पुर्नजन्म। जब हम जन्म लेते हैं तो नया शरीर धारण करते हैं,पर हमारी आत्मा, हमारे जीवन की चैतन्य शक्ति नई नहीं होती। वह पहले भी अनेक बार शरीर धारण कर जीवन भोग चुकी होती है। उन जीवनों के कर्म संस्कार उसके साथ होते है, जो इस जीवन में उसे प्रभावित प्रेरित करते हैं।
यह दर्शन की बात है, विश्वास की बात है। जिनका विश्वास इस पर टिक जाए, उनके लिए सब कुछ है, जिनका विश्वास न टिके उनके लिए कुछ नहीं है।
भारतीय साहित्य में इसका एक और भी समाधान हे। वह है अभिमन्यु। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु जब अपनी माता के गर्भ में था, तो अर्जुन ने एक दिन द्रौपदी को चक्रव्युह तोडने की विधि सुनाई-समझाई। चक्रव्युह को तोडकर उसमें घुसने की बात द्रौपदी ने ध्यान से सुनी पर जब उससे बाहर निकलने की बात आई तो द्रौपदी सौ गई।
इसी कारण महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु कौरवो के बनाए चक्रव्युह में घुस तो गया, पर निकल नही सका , वहीं मारा गया। महान् काव्य महाभारत की यह कथा कहती है कि जन्म से पहले भी मनुष्य वातवावरण का प्रभाव ग्रहण करता है।
पाकिस्तान के संस्थापक और भारत के बंटवारे के विधाता श्री मुहम्मद अली जिन्ना की मनोवृत्तियों का एक चमत्कारी विश्लेषण हुआ था। जिन्ना काठियावाड की खोजा जाति मे जन्मे थे। यह जाति हिन्दुओं की एक उपजाति थी।
इसकी श्रद्धा एक मुसलमान संत में हो गई। हिन्दु इसे गैर मानने लगे, पर इस जाति के लोगों का मानसिक स्तर हिन्दु ही रहा। हिन्दूओं जैसा नाम, आपस में मिलने पर हिन्दुओं जैसा ही अभिवादन, सलूनों के त्यौहार पर घर के द्वारो पर ‘राम-राम’ लिखना, गोबर से घर लीपना और हिन्दु पण्डित को बुलाकर विवाह करना। गुरू मुसलमान, जीवन आचार हिन्दु, यही रूप था- इन लोगों की सामाजिक जिन्दगी का।
उन्नीसवीं सदी में खोजा जाति में कुछ ऐसे बुजुर्ग थे, जिन्होंने अपने सामाजिक जीवन के इस द्वैत को समझाा और प्रयत्न किया कि पुरी तरह हिन्दु बनकर रहा जाए। उन्होंने अपनी जाति मेे बात चलाई, तो उसे भी सभी तरफ से समर्थन मिला। तब हिन्दु समाज के कर्णधारों से कहा गयाकि वे हमें ग्रहण करें, हम उनके ही हैं। बात शास्त्रों पर पहुंची।
शास्त्रों के सर्वेसर्वा थे पण्डित लोग। पण्डितों की राजधानी थी काशी। काशी के पण्डितों से इस पर व्यवस्था मांगी गई। उन्होंने व्यवस्था दी- खोजा लोगहिन्दुआंें में स्वीकार नही किए जा सकते।
खोजा जाति में इसकी बहुत उग्र प्रतिक्रिया हुई। हिन्दु मत केे जो चिहन जाति में थे, उन्हें तेजी से मिटाया गया। नाम बदले गए । दरवाजों से राम नाम मिटाए गए , पण्डित की जगह मौलवी ने ली। जाति में हिन्दुओं से पूर्ण विच्छेद की नीति अपना ली। जब यह प्रतिक्रिया अपने पूरे उग्र रूप में काम कर रही थी, तब जिन्ना का जन्म हुआ और इस प्रकार जिन्ना जनन्मजात प्रथकतवादी हिन्दु विरोधी बने।
अभिमन्यु और जिन्ना का उदाहरण कहते है कि मनुष्य अपने जन्म से पहले भी मनोवृत्तियों और प्रवत्तियां ग्रहण करता है। अनुभवों ओर लोककथाओं में इसके और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। यही पृष्ठभूमि है इन प्रश्नों की कि क्या भगतसिंह जन्म जाति क्रांतिकारी थे?
हां भगतसिंह जन्मजात क्रांतिकारी थे और पैदायशी नेता भी उन्हें किसी ने क्रांतिकारी बनाया नही, वे पैदा ही हुए थे क्रांति का नेतृत्व करने के लिए।
राजभक्ति की नर्म राजनीति ने जब गर्म राजद्रोह की ओर लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में पहली अंगडाई ली, तो सरदार किशन सिंह और सरदार अजीत सिंह उनके सीधे सम्पर्क मेें आ गए।
महाराष्ट्र से लौटकर वे दोनों अपने छोटे भाई सरदार स्वर्णसिंह से मिले अपैर अनय बहुत से मित्रों की एक गोष्ठ में तीनों ने देश व्यापी क्रांति क योजना पर विचार विमर्श किया । दो बाते सामने आई- क्रांतिकारी संस्था का संगठन और ऐसे पुत्रों का जन्म, जो आगे चलेकर क्रांति का नेतृत्व करंे।
सरदार अजीतसिंह का यह वाक्य हमारे वंश की धरोहर है- संस्था का काम हम सब करेंगे, पर दूसरा काम हमारे खानदान में तो भाई साहब (सरदार किशन सिंह) ही कर सकते है। क्या’’ भगत सिंह के जन्म से बहुत पहले ही यह क्रांतिकारी व्यक्तित्व का शिलान्या न था।
सरदार किशन सिंह के पिता (भगत सिंह के दादा) सरदार अर्जुन सिंह राष्ट्रीय आर्यसमाजी क्रांति (उस युग के वातावरण में हमे देखें, बाद के नही) के उग्र नेता थे। वे हवन के बाद वीरपुत्रों के लिए भगवान से नित्य प्रार्थना किया करते थे। कौन नही मानेगा कि इससे घर में विशेष वातावरण बनता था।
भारतमाता सोसायटी की स्थापना हुई। उसके जलते दहकते कार्यक्रम चालू हो गये। अंग्रेज सरकार कांपी और तीनों भाईयों पर खडग्हस्त हुई। सरदार अजीत सिंह माण्डले में जलावन्त किए गए। सरदार किशन सिंह और सरदार स्वर्णसिंह जेल भेजे गए ।
यह घर श्री सुफी अम्बाप्रसाद, श्री लाल हरदयाल ओर श्री लालचन्द फलक जैसे प्रतिभा पुत्रों और क्रांतिवीरों के लिए चैपाल बन गया। जिन दिनों घर में हर समय क्रांतिकी चर्चा होती थी, बलिदान के ही गीत गाए जाते ळो, उन्ही दिनों भगतसिंह अपनी माता के गर्भ में थे। जो चिंगारियां चारों और बोई जा रही थी, क्या उनके अंकुर भगतसिंह के मानस क्षेत्र में अंकुरित हुए होंगे।
भाग्य का कैसा संकेत है, इतिहास का कैसा चमत्कार है किजिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ टीक उसी दिन, सरदार अजीतसिंह का निर्वासन समाप्त हुआ। सरदार किशन सिंह और सरदार स्वर्णसिंह जेल से छुटे।
क्या भाग्य कह यह स्पष्ट घोषणा न थी कि आज विद्रोह प्रणेताओं के घर गुलामी का विजेता और क्रांति का महान् नेता जन्मा है? इसी पृष्ठभूमि में हम कह सकते हैं कि भगतसिंह जन्मजात नेता थे।
यह जन्मजात क्या चीज है? क्या सचमुच इसका कुछ अर्थ है? या यह बोल चाल का एक मुहावरा ही है?
अमुक आदमी जन्मजात कवि है, अमुक आदमी जन्मजात लेखक है, अमुक अदमी जन्मजात वैज्ञानिक है, इस तरह के वाक्य बहुतों के साथ जोडे गए हैं, पर इनका सार क्या है?
यह प्रश्न महत्वपुर्ण है। इस महत्व को प्रश्न से साफ-साफ अनुभव कर यकते हैं कि क्या कोई व्यक्ति अपने जन्म से पहले भी कुछ सीख सकता है? किसी प्रकार की मनोवृत्ति अपने नन्हे से मानस में ग्रहण कर सकता है?
भारत के दर्शन ने इसका उत्तर दियश है-पुर्नजन्म। जब हम जन्म लेते हैं तो नया शरीर धारण करते हैं,पर हमारी आत्मा, हमारे जीवन की चैतन्य शक्ति नई नहीं होती। वह पहले भी अनेक बार शरीर धारण कर जीवन भोग चुकी होती है। उन जीवनों के कर्म संस्कार उसके साथ होते है, जो इस जीवन में उसे प्रभावित प्रेरित करते हैं।
यह दर्शन की बात है, विश्वास की बात है। जिनका विश्वास इस पर टिक जाए, उनके लिए सब कुछ है, जिनका विश्वास न टिके उनके लिए कुछ नहीं है।
भारतीय साहित्य में इसका एक और भी समाधान हे। वह है अभिमन्यु। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु जब अपनी माता के गर्भ में था, तो अर्जुन ने एक दिन द्रौपदी को चक्रव्युह तोडने की विधि सुनाई-समझाई। चक्रव्युह को तोडकर उसमें घुसने की बात द्रौपदी ने ध्यान से सुनी पर जब उससे बाहर निकलने की बात आई तो द्रौपदी सौ गई।
इसी कारण महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु कौरवो के बनाए चक्रव्युह में घुस तो गया, पर निकल नही सका , वहीं मारा गया। महान् काव्य महाभारत की यह कथा कहती है कि जन्म से पहले भी मनुष्य वातवावरण का प्रभाव ग्रहण करता है।
पाकिस्तान के संस्थापक और भारत के बंटवारे के विधाता श्री मुहम्मद अली जिन्ना की मनोवृत्तियों का एक चमत्कारी विश्लेषण हुआ था। जिन्ना काठियावाड की खोजा जाति मे जन्मे थे। यह जाति हिन्दुओं की एक उपजाति थी।
इसकी श्रद्धा एक मुसलमान संत में हो गई। हिन्दु इसे गैर मानने लगे, पर इस जाति के लोगों का मानसिक स्तर हिन्दु ही रहा। हिन्दूओं जैसा नाम, आपस में मिलने पर हिन्दुओं जैसा ही अभिवादन, सलूनों के त्यौहार पर घर के द्वारो पर ‘राम-राम’ लिखना, गोबर से घर लीपना और हिन्दु पण्डित को बुलाकर विवाह करना। गुरू मुसलमान, जीवन आचार हिन्दु, यही रूप था- इन लोगों की सामाजिक जिन्दगी का।
उन्नीसवीं सदी में खोजा जाति में कुछ ऐसे बुजुर्ग थे, जिन्होंने अपने सामाजिक जीवन के इस द्वैत को समझाा और प्रयत्न किया कि पुरी तरह हिन्दु बनकर रहा जाए। उन्होंने अपनी जाति मेे बात चलाई, तो उसे भी सभी तरफ से समर्थन मिला। तब हिन्दु समाज के कर्णधारों से कहा गयाकि वे हमें ग्रहण करें, हम उनके ही हैं। बात शास्त्रों पर पहुंची।
शास्त्रों के सर्वेसर्वा थे पण्डित लोग। पण्डितों की राजधानी थी काशी। काशी के पण्डितों से इस पर व्यवस्था मांगी गई। उन्होंने व्यवस्था दी- खोजा लोगहिन्दुआंें में स्वीकार नही किए जा सकते।
खोजा जाति में इसकी बहुत उग्र प्रतिक्रिया हुई। हिन्दु मत केे जो चिहन जाति में थे, उन्हें तेजी से मिटाया गया। नाम बदले गए । दरवाजों से राम नाम मिटाए गए , पण्डित की जगह मौलवी ने ली। जाति में हिन्दुओं से पूर्ण विच्छेद की नीति अपना ली। जब यह प्रतिक्रिया अपने पूरे उग्र रूप में काम कर रही थी, तब जिन्ना का जन्म हुआ और इस प्रकार जिन्ना जनन्मजात प्रथकतवादी हिन्दु विरोधी बने।
अभिमन्यु और जिन्ना का उदाहरण कहते है कि मनुष्य अपने जन्म से पहले भी मनोवृत्तियों और प्रवत्तियां ग्रहण करता है। अनुभवों ओर लोककथाओं में इसके और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं। यही पृष्ठभूमि है इन प्रश्नों की कि क्या भगतसिंह जन्म जाति क्रांतिकारी थे?
हां भगतसिंह जन्मजात क्रांतिकारी थे और पैदायशी नेता भी उन्हें किसी ने क्रांतिकारी बनाया नही, वे पैदा ही हुए थे क्रांति का नेतृत्व करने के लिए।
राजभक्ति की नर्म राजनीति ने जब गर्म राजद्रोह की ओर लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में पहली अंगडाई ली, तो सरदार किशन सिंह और सरदार अजीत सिंह उनके सीधे सम्पर्क मेें आ गए।
महाराष्ट्र से लौटकर वे दोनों अपने छोटे भाई सरदार स्वर्णसिंह से मिले अपैर अनय बहुत से मित्रों की एक गोष्ठ में तीनों ने देश व्यापी क्रांति क योजना पर विचार विमर्श किया । दो बाते सामने आई- क्रांतिकारी संस्था का संगठन और ऐसे पुत्रों का जन्म, जो आगे चलेकर क्रांति का नेतृत्व करंे।
सरदार अजीतसिंह का यह वाक्य हमारे वंश की धरोहर है- संस्था का काम हम सब करेंगे, पर दूसरा काम हमारे खानदान में तो भाई साहब (सरदार किशन सिंह) ही कर सकते है। क्या’’ भगत सिंह के जन्म से बहुत पहले ही यह क्रांतिकारी व्यक्तित्व का शिलान्या न था।
सरदार किशन सिंह के पिता (भगत सिंह के दादा) सरदार अर्जुन सिंह राष्ट्रीय आर्यसमाजी क्रांति (उस युग के वातावरण में हमे देखें, बाद के नही) के उग्र नेता थे। वे हवन के बाद वीरपुत्रों के लिए भगवान से नित्य प्रार्थना किया करते थे। कौन नही मानेगा कि इससे घर में विशेष वातावरण बनता था।
भारतमाता सोसायटी की स्थापना हुई। उसके जलते दहकते कार्यक्रम चालू हो गये। अंग्रेज सरकार कांपी और तीनों भाईयों पर खडग्हस्त हुई। सरदार अजीत सिंह माण्डले में जलावन्त किए गए। सरदार किशन सिंह और सरदार स्वर्णसिंह जेल भेजे गए ।
यह घर श्री सुफी अम्बाप्रसाद, श्री लाल हरदयाल ओर श्री लालचन्द फलक जैसे प्रतिभा पुत्रों और क्रांतिवीरों के लिए चैपाल बन गया। जिन दिनों घर में हर समय क्रांतिकी चर्चा होती थी, बलिदान के ही गीत गाए जाते ळो, उन्ही दिनों भगतसिंह अपनी माता के गर्भ में थे। जो चिंगारियां चारों और बोई जा रही थी, क्या उनके अंकुर भगतसिंह के मानस क्षेत्र में अंकुरित हुए होंगे।
भाग्य का कैसा संकेत है, इतिहास का कैसा चमत्कार है किजिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ टीक उसी दिन, सरदार अजीतसिंह का निर्वासन समाप्त हुआ। सरदार किशन सिंह और सरदार स्वर्णसिंह जेल से छुटे।
क्या भाग्य कह यह स्पष्ट घोषणा न थी कि आज विद्रोह प्रणेताओं के घर गुलामी का विजेता और क्रांति का महान् नेता जन्मा है? इसी पृष्ठभूमि में हम कह सकते हैं कि भगतसिंह जन्मजात नेता थे।
0 Comments