हमारी पड़ोसन के मन में आजकल भारी प्रेम उमड़ रहा है इसके अनचाहे प्यार में न जाने कितने बेकार हो गये पता नहीं क्यों अनेकों दिलों की चाहत को इस तरह ठुकरा कर केवल पुस्त्क के प्रेम में दीवानी होकर इन किताबों से चिपकी रहती है। ऊपर से यही कहती फिरती है कि प्यार किया कोई चोरी नहीं की। खुदा खैर करे इसने प्यार ही किया कोई यार नहीं। वैसे तैयार बहुत थे पर पुस्तक प्रेम के पीछै पागल हुई पड़ोसन को भली-भांति परख लिया तो किनारा कर लिया। पड़ोसन भी बहुत भली है एक नाजुक सी कली है। भले ही पुस्तक अपनी नहीं परायी है मगर इसने हर हाल में अपनायी है। बीबी हो तो ऐसी जो पराये मर्द को पास फटकने दे। सिर्फ पुस्तकें पढऩे से काम कैसे चलता यही सोचकर इसने छोटे बच्चों की पाठशाला खोल ली। जो स्वयं पढ़ती उसे बच्चों को सुनाकर जुगाली करती। कम से कम चुगली करने से बच जाती है पर बच्चों का दिमाग बहुत खाती है। प्रेमी तो संसार में विभिन्न प्रकार हैं लेकिन हमारी पड़ोसन सचमुच पुस्तक प्रेमी है। इसने कभी किसी की परवाह नहीं की अपने पति परमेश्वर को अक्सर प्रसन्न रखने के प्रयास में नई पुस्तकें लाने का प्रस्ताव रख देती बेचारे पड़ोसी बहुत परेशान है आखिर वो भी तो एक इन्सान है कोई जानवर तो है नहीं। पुस्तक की मांग को ध्यान में रख फिर भी हर हाल में अपना पति धर्म निभाते हैं। दुनिया को दिखाते है कि देखो हमारी धर्मपत्नीजी कितनी लिखी पढ़ी है। इसने मात्र पांच साल में तीन हजार पुस्तकें पढक़र विश्व रिकार्ड बनाया है। पुस्तक के अलावा इसे कुछ सूझता ही नहीं। खाना पकाना भी पुस्तक से पढक़र सीखी है। अब बेचारे पड़ोसी पर क्या बीती है आपको क्या बताये। पड़ोसी की सारी पूंजी पुस्तक में लगाकर पड़ोसन भले ही प्रसन्न हो पर पड़ोसी कदापि नहीं परमात्मा से प्रार्थना करता कि इसे परमधाम पहुंचा दे। प्यार की कोई सीमा होती है। हद से ज्यादा प्यार संसार को मंजूर ही नही। ये सारी बाते एकांत में बेठकर पंडित भूलेराम जी चौपाटी ने हमारी पड़ोसन को बड़े प्यार से समझाई मगर इसके समझ में न आई। माना कि प्यार करने का अधिकारी सरकार ने संसार में सबको बराबर दिया है फिर भी किसी ने ऐसा प्यार स्वीकार नहीं किया। हर बार प्यार में धोखा खाकर और अच्छा मौका पाकर बेवफा की भूमिका निभाते चले आ रहे हैं। एक हम है कि पड़ोसन की महिमा ही गा रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह पुस्तकों की पीड़ा भी नहीं समझती केवल किताबी कीड़ा बनकर उन्हें चाटती है। घटिया पुस्तकें पढ़ती है और दोष हमारे सिर पर मढ़ती है।
पुस्तक प्रेमी बनने से तो अच्छा था किसी फिल्मी कलाकार की प्रेमिका बन जाती जिससे अपने आप प्रसिद्धि मिलती। खैर अभी कुछ बिगड़ा नहीं है प्रयास करने पर सफलता जरूर हाथ लगेगी। प्रेमिका बनने पर निश्चित ही किस्मत खुलेगी। अब इन पुस्त्कों में पुरानी बातों के अलावा रखा ही क्या है। आज के इस अत्याधिक आधुनिक युग में सदा नवीन चाहिए। प्रेमी भी सुन्दर, सुशील और हसीन चाहिए। फटी पुरानी पुस्तकें पढऩे से भला क्या हासिल होगा। नये प्यार को पाने का प्रयत्न भी करना चाहिए। हमारी ज्ञानवर्धक बातें पड़ोसन के मन में मस्तिषक में भला कैसे बैठती उसमें तो पहले से ही जमाने भर का कचरा भरा है। पुस्तक पढऩे की लत में इसकी मत भी मारी गई। प्रत्येक पुस्तक को अपने पास संजोकर रखने वाली सर्वश्रेष्ठ पाठिका बिल्कुल श्रीकृष्ण की राधिका जैसी लगती है। जबकि राधा-कृष्ण का प्रेम अनूठा था मगर पडोसन का प्यार आधा सच्चा, आधा झूठा है। यदि सच्चा प्यार होता तो घर में एक बच्चा भी होता। बाल बच्चे को छोडिये बेचारे पतिदेव की परवाह भी नही की।
पुस्तक के पूरे पाठ तो कभी पढेे नहीं सिर्फ शीर्षक पढऩे से सम्पूर्ण सबक का ज्ञान कहां से प्राप्त होता फिर भी पुस्तक प्रेमी पड़ोसन जबरन अपना नाम गिनीज बुक में लिखाने को तुली है। अब सरकार भी क्या करे वह स्वयं मिलीजुली है। पुस्तक प्रेमी का सर्वोच्च सम्मान पाने को आतुर पड़ोसन ने पिछली बार को सरकार को गिराने की ठाल ली थी। बाद में बहुत सी बेकार की बातें मान ली थी। जिससे सरकार बच गई वरना कब की बदल जाती। वैसे भी पड़ोसन का प्रभाव आम जनता पर कम अपने पति पर ज्यादा पड़ता है। तभी तो बेचारा हर फरमाईश पूरी करता है। करवा चौथ को सैकड़ो पुस्तकें अपनी पत्नि को सौप कर यही सोचते रहा कि पुस्तक रूपी सौत मेरी पत्नि की जगह मेरे जीवन में न जाने कहां से आ गई। कितनी भी घटिया किताब क्यों न हो किन्तु इसके मन को सहज की भा गई। अब मैं क्या करूं कुछ समझ नहीं आता। पत्निव्रत को भलीभांति निभाते हुए पड़ोसी वीरगति को प्राप्त हुआ पर पड़ोसन में कोई परिवर्तन नही। पुस्तक के पीछे पागल होते जा रही है ऊसर से मोहल्ले वालो का दिमाग खा रही है। हमें क्या फर्क पडेगा हमने तो इसे स्वतन्त्र छोड़ रखा है जिसने कुछ भला हमारा भी हो सके। दिन-रात पुस्तक पढऩे से हमारा यही फायदा है कि इन्हें लडऩे झगडऩे का अवसर नहीं मिल पाता वरना बिना लडाई झगडैे के कोई पड़ोसन आज तक कभी चुपचाप बैठी है। भला हो भगवान का जो ऐसी भाग्यवान, ज्ञानवान पडोसन प्रदान की जो कम से कम मौन व्रत का पालन तो करती है। लड़ती है न झगडती है सिर्फ पुस्तक पढ़ती है। पढे लिखे होने का गर्व हमें कभी महसूस नहीं हुआ परन्तु पड़ोसन पर अभिमान जरूर होता है। जबकि हर इन्सान अच्छी पड़ोसन को पाने के चक्कर में अवश्य पीटता है। कुछ लिखता भी है तो कोई पढ़ता नहीं पढऩे वाली पुस्तक प्रेमी पड़ोसन बड़े भाग्य से मिलती है। यदि मिल जाए तो समझ लेना खुल गई किस्मत। किस्मत के धनी मेरे जैसे लोग शायद ही कही मिले इसलिए मिलने का समय निर्धारित कर दिया है। सुबह 8 से 10, शाम 7 से 9। रात्रि नौ के बाद नौ दो ग्यारह हो जाते हैं फिर नजर किसी को नही आते हैं। शायद पड़ोसन से इश्क फरमाते हैं।
रामचरण यादव =याददाश्त=
बैतूल
पुस्तक प्रेमी बनने से तो अच्छा था किसी फिल्मी कलाकार की प्रेमिका बन जाती जिससे अपने आप प्रसिद्धि मिलती। खैर अभी कुछ बिगड़ा नहीं है प्रयास करने पर सफलता जरूर हाथ लगेगी। प्रेमिका बनने पर निश्चित ही किस्मत खुलेगी। अब इन पुस्त्कों में पुरानी बातों के अलावा रखा ही क्या है। आज के इस अत्याधिक आधुनिक युग में सदा नवीन चाहिए। प्रेमी भी सुन्दर, सुशील और हसीन चाहिए। फटी पुरानी पुस्तकें पढऩे से भला क्या हासिल होगा। नये प्यार को पाने का प्रयत्न भी करना चाहिए। हमारी ज्ञानवर्धक बातें पड़ोसन के मन में मस्तिषक में भला कैसे बैठती उसमें तो पहले से ही जमाने भर का कचरा भरा है। पुस्तक पढऩे की लत में इसकी मत भी मारी गई। प्रत्येक पुस्तक को अपने पास संजोकर रखने वाली सर्वश्रेष्ठ पाठिका बिल्कुल श्रीकृष्ण की राधिका जैसी लगती है। जबकि राधा-कृष्ण का प्रेम अनूठा था मगर पडोसन का प्यार आधा सच्चा, आधा झूठा है। यदि सच्चा प्यार होता तो घर में एक बच्चा भी होता। बाल बच्चे को छोडिये बेचारे पतिदेव की परवाह भी नही की।
पुस्तक के पूरे पाठ तो कभी पढेे नहीं सिर्फ शीर्षक पढऩे से सम्पूर्ण सबक का ज्ञान कहां से प्राप्त होता फिर भी पुस्तक प्रेमी पड़ोसन जबरन अपना नाम गिनीज बुक में लिखाने को तुली है। अब सरकार भी क्या करे वह स्वयं मिलीजुली है। पुस्तक प्रेमी का सर्वोच्च सम्मान पाने को आतुर पड़ोसन ने पिछली बार को सरकार को गिराने की ठाल ली थी। बाद में बहुत सी बेकार की बातें मान ली थी। जिससे सरकार बच गई वरना कब की बदल जाती। वैसे भी पड़ोसन का प्रभाव आम जनता पर कम अपने पति पर ज्यादा पड़ता है। तभी तो बेचारा हर फरमाईश पूरी करता है। करवा चौथ को सैकड़ो पुस्तकें अपनी पत्नि को सौप कर यही सोचते रहा कि पुस्तक रूपी सौत मेरी पत्नि की जगह मेरे जीवन में न जाने कहां से आ गई। कितनी भी घटिया किताब क्यों न हो किन्तु इसके मन को सहज की भा गई। अब मैं क्या करूं कुछ समझ नहीं आता। पत्निव्रत को भलीभांति निभाते हुए पड़ोसी वीरगति को प्राप्त हुआ पर पड़ोसन में कोई परिवर्तन नही। पुस्तक के पीछे पागल होते जा रही है ऊसर से मोहल्ले वालो का दिमाग खा रही है। हमें क्या फर्क पडेगा हमने तो इसे स्वतन्त्र छोड़ रखा है जिसने कुछ भला हमारा भी हो सके। दिन-रात पुस्तक पढऩे से हमारा यही फायदा है कि इन्हें लडऩे झगडऩे का अवसर नहीं मिल पाता वरना बिना लडाई झगडैे के कोई पड़ोसन आज तक कभी चुपचाप बैठी है। भला हो भगवान का जो ऐसी भाग्यवान, ज्ञानवान पडोसन प्रदान की जो कम से कम मौन व्रत का पालन तो करती है। लड़ती है न झगडती है सिर्फ पुस्तक पढ़ती है। पढे लिखे होने का गर्व हमें कभी महसूस नहीं हुआ परन्तु पड़ोसन पर अभिमान जरूर होता है। जबकि हर इन्सान अच्छी पड़ोसन को पाने के चक्कर में अवश्य पीटता है। कुछ लिखता भी है तो कोई पढ़ता नहीं पढऩे वाली पुस्तक प्रेमी पड़ोसन बड़े भाग्य से मिलती है। यदि मिल जाए तो समझ लेना खुल गई किस्मत। किस्मत के धनी मेरे जैसे लोग शायद ही कही मिले इसलिए मिलने का समय निर्धारित कर दिया है। सुबह 8 से 10, शाम 7 से 9। रात्रि नौ के बाद नौ दो ग्यारह हो जाते हैं फिर नजर किसी को नही आते हैं। शायद पड़ोसन से इश्क फरमाते हैं।
रामचरण यादव =याददाश्त=
बैतूल
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