यह शीर्षक स्कन्द पुराण के एक श्लोक का चरण है। इसका अर्थ है पूर्व काल में विश्वकर्मा जी और ब्रह्मा जी का एक ही शरीर था अर्थात ब्रह्मा जी और विश्वकर्मा में कोई अन्तर नहीं है। जन साधारण जानते है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी माने जाते है इसलिए ब्रह्मा जी और विश्वकर्मा जी को प्रजापति के नाम से संबोधित किया जाता है। ब्रह्मा जी ने जिस कला कौशल के साथ सृष्टि कह रचना की है उसकी नकल विश्वकर्मा जी ने की ओर शिल्प विहीन जगत को अपनी कारीगगरी से चमत्कृत किया है,इस प्रकार ब्रह्मा जी और विश्वकर्मा जी का एकसा ही रचना कार्य हुआ।
हिन्दू धर्म में जब देवी देवताओं की रचना हुई तो विश्वकर्मा जी को ब्रह्म का अवतार माना गया अर्थात् देवगणों में ब्रह्मा और विश्वकर्मा एक ही श्रेणी के देव माने गये। लेखक ने उत्तर भारत के अधिकांश संग्रहालयों में विश्वकर्मा जी की प्राचीनतम मूर्ति खोजने का प्रयत्न किया है परन्तु विशेष सफलता हाथ नहीं लगी। राजस्थान की राजधानी जयपुर तो कला की नगरी मानी जाती है। सम्पूर्ण भारत में देवी देवताओं की प्रतिमाएं जयपुर से ही निर्यात की जाती है, यहां के संग्रहालय में भी ब्रह्मा विष्णु के साथ विश्वकर्मा जी की सामान्य और आधुनिक छोटी सी प्रतिमा मिली है। जयपुर के दर्शनीय स्थल आमेर के महलों के पास उस्तां दलाराम के बाग में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ विश्वकर्मा की कुछ प्रतिमा प्रामाणिक ढंग से बनाई गई रक्खी है यह प्रतिमा दाढ़ी वाली है और जयपुर शहर के रचना काल में अर्थात् 250 वर्ष की बनी है। उस्तां दलाराम जी का जयपुर नगर रचना में विशेष हाथ है, हो सकता है उन्होंने अपने आराध्य देव की प्रतिमा को शास्त्रीय ढंग से बनवाया हो?
ग्वालियर और मथुरा शहर के संग्रहालय भी प्रसिद्ध रहे है। दोनों में ही हमने संग्रहालय अधीक्षक से विश्वकर्मा जी की चर्चा की। मथुरा के संग्रहालय अध्यक्ष ने हम से स्पष्ट कहा विश्वकर्मा और ब्रह्मा तो एक ही है फिर विश्वकर्मा जी की प्रतिमा पृथक हो ही कैसे सकती है? ब्रह्मा जी की प्रतिमाएंे भी विष्णु अपेक्षा नगण्य ही मिलती है।
हमारे मस्तिष्क में इस लेख के शीर्षकानुसार यह बात सदैव काम करती है कि ब्रह्मा जी क मंदिर में विश्वकर्मा जी और ब्रह्मा जी की प्रतिमा का सादृश्य जाना जाय। देश में विश्वकर्मा जी के मंदिर तो सैंकडों की संख्या में है और उनमें प्रतिमाएं भी अनेकों प्रकार की मिलती है परन्तु ब्रह्मा जी के मंदिर तो सम्पूर्ण भारत में मात्र दो स्थानों पर है राजस्थान के पुष्कर तीर्थ पर और गुजरात के खेड ब्रह्मा गांव में संयोग से खेड ब्रह्म गांव में एक विवाह संस्कार कराने का हमें 19 फरवरी 1980 का निमंत्रण मिला। हमने सहर्ष स्वीकार कर लिया और दो मंत्रोंच्चारण करे वाले छात्रों को साथ लेकर हम खेडब्रह्मा पहंच गये। विवाह से निवृत्त होकर 20 फरवरी को हम तीनों ही नदी पार ब्रह्मा जी के मंदिर में गये इस गांव का नाम खेड ब्रह्मा, ब्रह्मा जी के मंदिर के कारण ही पडा है। वास्तु शास्त्र की दृष्टि से यह विशाल मंदिर हजारों वर्ष पुराना शिला खंडों को जोड़कर बनाया गया है।
ब्रह्मा जी की प्रतिमा जिस सिंहासन पर प्रस्थापित की गई थी, वहीं प्रमुख गोलाकर भवन हमारा दर्शनीय स्थल था। पादत्राण विहीन होकर हमने मंदिर के प्रथम द्वार में प्रवेश किया जहां दानपात्र के साथ एक मुनीम जी बैठे थे उनसे प्रमुख पंडित का परिचय करके कुछ दक्षिणा देकर पंडित को बुलाने का आग्रह किया। कुछ काल की प्रतीक्षा के पश्चात धवल वेशधारी एक अधेड़ आयु के पंडित रामशंकर खांडेलवाल की प्रतीक्षा गण में प्रवेश हुआ आवश्यक अभिवादन के पश्चात हमने उन से प्रश्न किये। ब्रह्मा जी के चारों हाथ में क्या-2 है? उत्तर दाहिने ऊपर के हाथ में अमृतघट है, ऊपर के वाम हस्म में स्त्रच या स्त्रुवा है जिससे यज्ञाहुति दी जाती हैं। नीचे के दक्षिण हाथ में वेद अर्थात् ज्ञान की पुस्तक है और वाम हस्त में कमण्डल है। प्रश्न ये दाएं बांए देवियों कौन है? उत्तर-गायत्री और सावित्री हैं साथ ही उन्होंने यह श्लोक पढ़ा चतुर्वक्त्र चतुर्हस्तम हंस वाहन संस्थितम्। गायत्री सावित्री ब्रह्म देवी नमोस्तुते। अर्थात् चतुर्मुख वाले चार भुजा वाले जिनका वाहन हंस है और जिनके दाएं बाए गायत्री और सावित्री देवी स्थित है ऐसे ब्रह्म देव को नमस्कार हो। प्रश्न इनके वाहन हंस क्यों है? उत्तर हंस ज्ञान और बुद्धि अर्थात् विवेक का परिचायक है जिसे मेघा बुद्धि कहते हैं। ब्रह्मा जी ने तो वेद बनाएं है फिर हंस इनका वाहन क्यों नहीं होगा? प्रश्न-इनके दाढ़ी क्यों बनाई गई है? उत्तर - दाढ़ी वृद्धत्व का बोध कराती है ब्रह्मा जी चारों वेदों के ज्ञाता पूर्ण ज्ञानी थे। दाढ़ी ज्ञान वृद्ध की परिचायक है उन्होंने बताया सस्त्रों वर्ष पूर्व जब यह प्र्रतिमा स्थापित हुई तो देशभर के पंडित इकट्ठे हुए थे, उन्होंने अन्य देवों की तुलना में ब्रह्मा जी को पितामह सिद्ध किया था और प्रतिमा दाढ़ी बनाना आवश्यक बताया था। प्रश्न-विश्वकर्मा जी भी दाढ़ी है और वे भी हम वाहन है? उत्तर - ब्रह्मा जी और विश्वकर्मा तो एक ही है हमने पंडित जी के सामने विश्वकर्मा विश्वकर्मा अमत्पूर्व वह मणस्तव परातन वाला श्लोक बताया और विश्वकर्मा देव का स्वरूप निम्न प्रकार वर्णन किया। मंडन सूत्रधार कृत श्लोकः कम्बा सूत्राम्बुपात्रं वहति करतले पुस्त्क ज्ञानसूत्रं हंमारूढः त्रिनेत्रः शुभ मुकुटशिरा संर्वतो वृद्धकय येन सृष्टं सकल सुरगृह राजहम्र्याहि हम्ये, देवोअसो सूत्रधारी जगदखिलहितः पातु वो विश्वकर्मा।।4।। वास्तु राजब्ललभ।
अर्थ:- जो विश्वकर्मा देव का एक हाथ में कंवा (गज) दूसरे में सूत्र, तीसरे में जलपात्र कमण्डल चैथे में ज्ञान की भूल पुस्तक अर्थ वेद या शिल्प शास्त्र धारण करते है जो हंसा रूढ है जिनके तीन नेत्र है, जिनके सिर पर उत्तम मुकुट है जिनका शरीर सब और फैला है जिनसे तीनों लोक और देवो गृहों का निर्माण किया है जिसने सभी राजगृहों को बनाया है जो संसार का कल्याण करते है वह सूत्रधार विश्वकर्मा देव हम लोगों को रक्षा करें। इस प्रकार ब्रह्मा जी और विश्वकर्मा जी का सादृश्य सिद्ध हो गया है जो ब्रह्मा है वही विश्वकर्मा है, जो विश्वकर्मा है वही ब्रह्मा है।
-पं. हरिकेश दत्त शास्त्री
0 Comments