कुंभकर्ण ने एक से एक बढ़कर अलौकिक शस्त्रों के आविष्कार भी किये थे, जैसे शत्रु को अंधा, बहरा, पागल कर देने वाला दर्शन श्रवण्पा यंत्र आदि।
हजारों वर्षो के भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं भूगर्भ शस्त्र के महान विद्वानों द्वारा की गयीं आधुनिक नवीनतम खोजों के अनुसार जिस प्रकार यह सत्य सिद्ध हुआ है कि रावण की वास्तविक रामायण कालीन लंका जो शून्य अंश-अक्षांस तथा 15 दशमलव 50 अंश देशांश पर स्थित थी, समुद्र में डूब चुकी है, उसी प्रकार यह रोमाचंक सत्य भी सामने आया है कि रावण का तीसरा भाई कुंभकर्ण अनुपम योद्धा, पं्रचड ईश्वर-भक्त तथा प्रसिद्ध शिक्षक होने के साथ ही संसार के प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी था। जैसे वर्तमान श्रीलंका अब वास्तव में में रामायणकालीन सिंहल द्वीप मानी जाने लगी है वैसे ही कुंभकर्ण के संबंध की अब तक की यह मान्यता भी झूठ साबित हुई है कि वह महान आलसी, छह माहों तक सोने वाला तथा छह माहों तक जागने वाला केवल एक निकम्मा लंपट राक्षसराज था।
सच्चाई यह है कि वह गुप्त रूप से लंका से छह माहों के लिए अमरीका व हिमालय के भयानक जंगली क्षेत्रों में जाकर वहां न केवल विज्ञान के नये प्रयोग करता था, बल्कि अपने बनाये अंतरिक्षयानों में बैठकर मंगल, बुध आदि अनगिनत ग्रहों की सैर कर लंका वापस लौटकर छह माहों तक वहां की प्रसिद्ध प्रयोगशालाओं में छात्रों में को अपने खोजपरक ज्ञान से परिचित कराता था। यह कुंभकर्ण की वैज्ञानिक सिद्ध शक्तियों का ही प्रताप था, जिसके बल पर रावण ने इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था। जिसका विशालता की टक्कर इस धरती पर कोई नहीं ले सकता। (संभयतया) पाठक जाने ही हैं कि रोवण के साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था और वह लंका, विंध्याचल पर्वत के दक्षिण का भारत आस्ट्रेलिया, पूर्वी द्वीप समुदाय, साईबेरिया, चीन, अफरीका, ईरान, अफगानिस्तान, अरब, मिस्त्र, द. अमेरिका तथा अब जलमग्न अटलांटिस और म्यू द्वीपों तक फैला था।
राम के समकालीन महर्षि श्रृंगी व उनके प्रिय शिष्य महानंद के ग्रंथो, वाल्मीकि रामायण, तेलगु की कम्ब तथा रंगनाथ रामायणों, कन्नड़ की परंपरागत तथा मलयालम की आध्यात्मक रामायण सहित अनेक ऋषियों तथा संस्कार धानी जबलपुर के विद्वान श्री गोमती शंकर शुक्ल के अत्यंत मौलिक ग्रंथ ‘गाथा राम रावण’ में वर्णित तथ्यों के आधार पर कुंभकर्ण की रहस्यमयी वैज्ञानिक उपलब्धियों निम्नानुसार थींः
हजारों वर्षो के भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं भूगर्भ शस्त्र के महान विद्वानों द्वारा की गयीं आधुनिक नवीनतम खोजों के अनुसार जिस प्रकार यह सत्य सिद्ध हुआ है कि रावण की वास्तविक रामायण कालीन लंका जो शून्य अंश-अक्षांस तथा 15 दशमलव 50 अंश देशांश पर स्थित थी, समुद्र में डूब चुकी है, उसी प्रकार यह रोमाचंक सत्य भी सामने आया है कि रावण का तीसरा भाई कुंभकर्ण अनुपम योद्धा, पं्रचड ईश्वर-भक्त तथा प्रसिद्ध शिक्षक होने के साथ ही संसार के प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी था। जैसे वर्तमान श्रीलंका अब वास्तव में में रामायणकालीन सिंहल द्वीप मानी जाने लगी है वैसे ही कुंभकर्ण के संबंध की अब तक की यह मान्यता भी झूठ साबित हुई है कि वह महान आलसी, छह माहों तक सोने वाला तथा छह माहों तक जागने वाला केवल एक निकम्मा लंपट राक्षसराज था।
सच्चाई यह है कि वह गुप्त रूप से लंका से छह माहों के लिए अमरीका व हिमालय के भयानक जंगली क्षेत्रों में जाकर वहां न केवल विज्ञान के नये प्रयोग करता था, बल्कि अपने बनाये अंतरिक्षयानों में बैठकर मंगल, बुध आदि अनगिनत ग्रहों की सैर कर लंका वापस लौटकर छह माहों तक वहां की प्रसिद्ध प्रयोगशालाओं में छात्रों में को अपने खोजपरक ज्ञान से परिचित कराता था। यह कुंभकर्ण की वैज्ञानिक सिद्ध शक्तियों का ही प्रताप था, जिसके बल पर रावण ने इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था। जिसका विशालता की टक्कर इस धरती पर कोई नहीं ले सकता। (संभयतया) पाठक जाने ही हैं कि रोवण के साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था और वह लंका, विंध्याचल पर्वत के दक्षिण का भारत आस्ट्रेलिया, पूर्वी द्वीप समुदाय, साईबेरिया, चीन, अफरीका, ईरान, अफगानिस्तान, अरब, मिस्त्र, द. अमेरिका तथा अब जलमग्न अटलांटिस और म्यू द्वीपों तक फैला था।
राम के समकालीन महर्षि श्रृंगी व उनके प्रिय शिष्य महानंद के ग्रंथो, वाल्मीकि रामायण, तेलगु की कम्ब तथा रंगनाथ रामायणों, कन्नड़ की परंपरागत तथा मलयालम की आध्यात्मक रामायण सहित अनेक ऋषियों तथा संस्कार धानी जबलपुर के विद्वान श्री गोमती शंकर शुक्ल के अत्यंत मौलिक ग्रंथ ‘गाथा राम रावण’ में वर्णित तथ्यों के आधार पर कुंभकर्ण की रहस्यमयी वैज्ञानिक उपलब्धियों निम्नानुसार थींः
अद्भूत प्रयोगशालाएं
अति आश्चर्यजनक प्रतिभा के धनी कुंभकर्ण ने प्रांरभ से ही कट्टर सात्विक जीवन बिताया था तथा अपनी प्रचंड शिवभक्ति के बल पर ही उसने भगवान शंकर से रावण से भी बढ़-चढ़कर दुर्लभ वैज्ञानिक सिद्धियां प्राप्त की थी। महर्षि भारद्वाज के आशीष से निद्रा पर विजय प्राप्त कर वह रात-दिन अपने वैज्ञानिक प्रयोगों व अनुसंधानों में ऐसा जुटा था कि कुछ वर्षो में ही उसने इच्छा चालित विमानों, उड़नेवालें रथों, अद्भुत अंतरिक्षयानों तथा भयंकरतम अस्त्रशस्त्रों का आविष्कार कर सारी दुनिया में धूम मचा दी थी। रावण ने अपने लंका में उसी के सहयोग से संसार प्रसिद्ध दर्जनों विज्ञान विश्वविद्यालय तथा सैंकड़ों अद्भुत वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं खोली थीं, जिनका प्रमुख स्वयं कुंभकर्ण था जो अपने सहयोगियों सहित विद्यार्थियों को भौतिक व आध्यात्मिक विज्ञान का प्रशिक्षण देता था। साथ ही रावण ने जब खुद भगवान शंकर को लंका में आमंत्रित कर उन्हें अपनी ये प्रयोगशालाए दिखलायी थी, तब उन्होंने उन दोनों को आर्शीवाद देते हुए आदेश दिया था कि वे अपने आविष्कारों का सदुपयोग मानवता के कल्याण के लिए ही करें, क्योंकि विनाश के लिए करने से सारी सृष्टि का अंत हो जाएगा।वास्तविक कार्यक्षेत्र: दक्षिणी अमरीका
विद्वानों के कथनानुसार-कंुभकर्ण ने अपनी रहस्यमयी विज्ञान साधना के लिए भारत को कभी नहीं चुना। वह हिमालय तथा तिब्बत के साथ ही दक्षिणी अमरीका (उन दिनों का पाताल लोक) के पेरू, मेक्सिकों, एरीजोना, यूकातान, ग्वाटेमाला तथा होंडफराज आदि उन क्षेत्रों से संबंधित था जिसमें दुनिया के लाखोां वर्ष पुराने मय सभ्यता वासियों का वास था। यह उसका सौभाग्य था, क्योंकि यूरोप के विश्वप्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक व इतिहासवेत्ता प्लेटों के ग्रंथों के अनुसार मय जाति के पूर्वज अंतरिक्ष के किसी अज्ञात ग्रह से उतरकर उपर्युक्त क्षेत्रों सहित अटलांटिस द्वीप (अब जलमग्न) में बस गये थे। द्रविड़ सभ्यता के पोषक राक्षसराज रावण ने उपर्युक्त क्षेत्रों में अपना साम्राज्य स्थापित किया तथा कुंभकर्ण सहित उसे भी मयजाति के लोगों से ही वैज्ञानिक अनुसंधानों व सिद्धांतों का अपार भंडार मिला था। प्राचीनमय-संस्कृति व सभ्यता के खोजी विद्वान क्रेग तथा एरिक अमलैंड के अनुुसार इन क्षेत्रों में उतरे दूसरे ग्रहवासी ही अपने साथ अंतरिक्षयान, बिजली, एक्सरे, टेलीविजन आदि की विद्या लाये थे। इस बात की पूर्ण संभावनाएं है कि वैज्ञानिक कुंभकर्ण ने भी उनसे ये विद्याएं सीखकर बदले में उन्हें भी अपनी स्वयं की वैज्ञानिक उपलब्धियों से परिचित कराया होगा। इस वैज्ञानिक लेन-देन से कुंभकर्ण को दूना लाभ हुआ और वह आविष्कारों की दौड़ में चमत्कारी रूप से सारी दुनिया में सबसे अधिक बढ़ चढकर माना जाने लगा था।सुदूर ग्रहों का भ्रमण
रावण तथा अपने विशाल साम्राज्य को दुर्लभ वैज्ञानिकों उपलब्धियों (चमत्कारी, चिकित्सा पद्धति, एक्सरे, बिजली, दुरदर्शन फोटोग्र्राफी इच्छाचालित यानों उडन रथों, अंतरिक्ष यानों आदि) से समृद्ध कर सुदूर अंतरिक्ष ग्रहवासियों से संपर्क साधने की इच्छा से कुंभकर्ण ने अपने अंतरिक्षयानों पर बैठकर जब पहली बार मंगल ग्रह की यात्रा की तो वहां से लौटकर उसने रावण को सूचित किया था कि मंगल में भी धरती वासियों जैसे मानव सभ्यता है, (आज की बीसवीं सदी के वैज्ञानिकों ने भी मंगल ग्रह में प्राणियों के होने की पुष्टि की है) कुंभकर्ण ने अंतरिक्ष में जहां-तहां घूमते विनाशक उल्का पिंडो का भी उल्लेख किया था।रावण के कारण सर्वनाश
कुंभकर्ण ने एक से बढ़कर एक अलौकिक शस्त्रों के आविष्कार भी किये थे, जैसे शत्रु को अंधा, बहरा, पागल कर देने वाला दर्शन श्रवण यंत्र आदि। इस बीच रावण अपने विशाल साम्राज्य तथा विराट संपदा केू कारण दंभी व भयानक भ्रष्टाचारी होकर घोर आतंक फैलाता हुआ राम की सीता को चुरा लाया। इससे क्रुद्ध होकर स्वयं शंकर सहित समस्त देवताओं ने राम मदद की और उन्होेंने जब अपनी विशाल वानर सेना सहित लंका पर आक्रमण किया, तब रावण ने अपनी पराजय निकट जानकर कुंभकर्ण को राम से लड़ने के लिए बुलाया। कुंभकर्ण ने रावण को राम की सीता वापस देने की सलाह देते हुए जब उसे धिक्कारा तब रावण ने उसे कायर कहते हुए राम से युद्ध के लिए ललकारा।बस यहीं से कुुंभकर्ण की समस्त अलौकिक वैज्ञानिक उपलब्धियों का सर्वनाश होना प्रांरभ हो गया। यद्य़ति कुंभकर्ण को युद्ध करने का कोई सीधा अनुभव नहीं था, परंतु फिर भी उसने राम के विरूद्ध भीषण वैज्ञानिक युद्ध लड़ने का निश्चय किया। वह अकेला अपने बनाये पहाड़ की तरह विशाल फौलादी यंत्र दैत्य के भीतर बैठकर युद्ध भूमि में कूदकर राम की समस्त वानर सेना को गाजर-मूली की तरह काटने लगा। यह देश विभीषण कुंभकर्ण के पास उससे मिलने गये। कुंभकर्ण ने विभीषण से अपनी लाचारी का वर्णन करते हुए कहा, ‘‘ मुझे राम के अतिरिक्त कोई नहीं मार पाएगा और मुझे पता है कि मैं उन्हीं के हाथों मारा जाउंगा, क्योंकि मैने रावण की गलत आज्ञा मानकर घोर अपराध किया है जिसका सजा मेरी मृत्यु है।’’ विभीषणर ने वापस लौटकर राम को कंुभकर्ण का यह रहस्य समझाया कि जब तक उसके यंत्र दैत्य को नही गलाया जाएगा, तब तक वह नहीं मर सकता। विभीषण की चेतावनी को ध्यान में रखकर दूसरे दिन राम ने महर्षि विश्वामित्र द्वाीा दिये गये ऐसे अभिमंत्रित बाण कुंभकर्ण की ओर छोड़े जिनके कारण उसका पहाड़ जैसाप भीमकाय यंत्र दैत्य मोम की तरह गलकर नष्ट हो गया। जैसे ही कुंभकर्ण यंत्र दैत्य से बाहर निकला वैसे ही राम ने एक बाण से उसे मार गिराया। इस प्रकार अत्याचारी रावण कार साथ देने के कारण दुनिया के महानतम वैज्ञानिक कुुंभकर्ण का दुखद अंत हो गया तथा उसी के साथ उसकी सारी वैज्ञानिक उपलब्धियां भी नष्ट-भ्रष्ट होकर लुप्त हो गयीं।
कुंभकर्ण की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र सुमेतकेतु अपने पिता की वैज्ञानिकता में इसलिए कोई प्रगति नहीं कर सकता, क्योंकि वह काफी पहले से ही रावण की आतंककारी गतिविधियों से विरक्त होकर सन्यासी बन गया था।
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