रचनाकार-कवि गौरव चौहान इटावा
भारत की बर्बादी का वो खुलेआम आयोजन था,
जिसे कन्हैया समझे थे वो कलयुग का दुर्योधन था,
ये यूनीवर्सिटी ज़हर की खेती करने वाली है,
नौजवान पीढ़ी के मन में नफरत भरने वाली है,
यहाँ किताबों पर मदिरा के अर्घ चढ़ाये जाते हैं,
देश-धर्म से गद्दारी के पाठ पढ़ाये जाते हैं,
ब्रेनवाश की मुहिम छिड़ी है इस परिसर में सालों से,
प्रोफ़ेसर के पद भी देखो भरे पड़े चण्डालों से,
काश्मीर को आज़ादी दो,बोध कराया जाता है,
भारत के टुकड़े करने पर शोध कराया जाता है,
महिषासुर को दुर्गा वध के कोर्स कराये जाते हैं,
और कन्हैया चीर हरण में फेलोशिप ले आते है,
लाल जवाहर की छाती पर ये अफीम की फसलें हैं,
और कलंकित वामपंथ की ये नाजायज नस्लें हैं,
बोल कन्हैया तुझको कितनी और अधिक आज़ादी दें,
संविधान को आग लगा दें भारत को बर्बादी दें,
हवस भरे हाथों में आज़ादी को खूब उछाला है,
तुमने मिलकर आज़ादी का गैंगरेप कर डाला है,
आग लगे उस आज़ादी को,जो भारत से बैर करे,
नक्सलियों को नायक माने,आतंकी की खैर करे,
आग लगे उस आज़ादी में जो दुश्मन को ताली दे,
खुलेआम जो भी भारत की सेनाओं को गाली दे,
ये गौरव चौहान कहे अब धैर्य टूटने वाला है,
गद्दारी से भरा हुआ अब घड़ा फूटने वाला है,
जिस दिन सेना सनक गयी,हर भूत उतारा जाएगा,
तू भी शायद सेना के हाथों से मारा जाएगा,
भारत का कानून अगर गद्दारों को सहलायेगा,
भारत माँ का बच्चा बच्चा ऊधम सिंह बन जाएगा,
भारत माँ का और अधिक अपमान नही सह पाएगी,
अब सच्चा इंसाफ यहाँ पर भीड़ सुनाने आएगी,
वो कान्हा है या कासिम है,रहम नही दिखलाएगी,
जो भारत को गाली देगा भीड़ उसे खा जायेगी,
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