इतिहास हमें अतीत की भूलों से बचने और अतीत के गौरव से प्रेरित होकर उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने की प्रेरणा देता है। भारतवर्ष में लंबे समय तक इतिहास परम्परा कर्णश्रुति के आधार पर रही है। पौराणिक युग में मलिन बुद्धि लेखकों ने अश्लील व तंत्र ग्रन्थ रचकर हमारे मूल इतिहास को विकृत करने का सूत्रपात किया। इस्लाम के आगमन पर मतांध व अनपढ़ लोगों ने भारत की प्रत्येक वस्तु को घृणित मानकर नष्ट किया। अनेक अंग्रेजों ने ‘यदि तुम किसी देश को नष्ट करना चाहते हो तो तो उसके इतिहास को नष्ट कर दो, राष्ट्र स्वयं ही नष्ट हो जाएगा।’ का पालन करते हुए भारतीय इतिहास पर प्रहार कर मानवीय इतिहास को भी विकृत कर दिया और आज भी लार्ड मैकाले के षड़यंत्रों से भ्रमित विद्वान् हमारी सुकोमलमति संतति को वही भ्रांत तथ्य परोस रहे हैं। यह कैसी विडम्बना है कि स्वाभिमानी व देशभक्त पूर्वजों की चर्चा करना इस स्वतंत्र देश में सांप्रदायिक माना जाता है, जबकि मानवता को कलंकित करने वाले मुहम्मद बिन कासिम से लेकर नादिरशाह तक के विदेशी लुटेरे हमलावरों का इतिहास पवित्र ग्रंथ के समान पढ़ना उदारता कहलाता है।
अंग्रेजों के षड़यंत्रों का भण्डा फोड़ते हुए युगप्रवर्तक महर्षि दयानन्द ने कहा था- ‘ए भारतीयो! तुम्हारे पूर्वज जंगलों में बसे अशिक्षित नहीं थे, अपितु विश्व को जाग्रत करने वाले महापुरुष थे। तुम्हारा इतिहास पराजय की गठरी नहीं, अपितु विश्व विजेताओं की गौरव गाथा है। जागिये, उठिये और अपने उज्ज्वल इतिहास का अभिमान रखिए।’ इनकी राह पर चलते हुए आर्य समाज में पण्डित लेखराम, पं0 भगवद्दत्त रिसर्च स्कालर जैसे अनेक इतिहासकार हुए, जिनका प्रयास यही रहा कि हमारे देशवासी अपने सही इतिहास को जानें। आर्यजगत् के उदीयमान् लेखक विचारक श्री राजेशार्य ने ‘स्वाभिमान का प्रतीक मेवाड़’ पुस्तक की रचना कर दिग्भ्रमित लोगों को नवसंदेश दिया है। इससे पूर्व भी इनकी ‘हिन्दू इतिहास: वीरों की दास्तान’ नामक चर्चित पुस्तक और अनेक लेख- टिप्पणियाँ इतिहास व अन्य विषयों पर प्रकाशित हुए हैं।
मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि ये नैरोग्य व उत्तम बल बुद्धि को प्राप्त कर ऐसे सामाजिक कार्यों में सर्वप्रकारेण लगे रहें।
डॉ0 देवव्रत आचार्य,
प्राचार्य, गुरुकुल कुरुक्षेत्र
अंग्रेजों के षड़यंत्रों का भण्डा फोड़ते हुए युगप्रवर्तक महर्षि दयानन्द ने कहा था- ‘ए भारतीयो! तुम्हारे पूर्वज जंगलों में बसे अशिक्षित नहीं थे, अपितु विश्व को जाग्रत करने वाले महापुरुष थे। तुम्हारा इतिहास पराजय की गठरी नहीं, अपितु विश्व विजेताओं की गौरव गाथा है। जागिये, उठिये और अपने उज्ज्वल इतिहास का अभिमान रखिए।’ इनकी राह पर चलते हुए आर्य समाज में पण्डित लेखराम, पं0 भगवद्दत्त रिसर्च स्कालर जैसे अनेक इतिहासकार हुए, जिनका प्रयास यही रहा कि हमारे देशवासी अपने सही इतिहास को जानें। आर्यजगत् के उदीयमान् लेखक विचारक श्री राजेशार्य ने ‘स्वाभिमान का प्रतीक मेवाड़’ पुस्तक की रचना कर दिग्भ्रमित लोगों को नवसंदेश दिया है। इससे पूर्व भी इनकी ‘हिन्दू इतिहास: वीरों की दास्तान’ नामक चर्चित पुस्तक और अनेक लेख- टिप्पणियाँ इतिहास व अन्य विषयों पर प्रकाशित हुए हैं।
मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि ये नैरोग्य व उत्तम बल बुद्धि को प्राप्त कर ऐसे सामाजिक कार्यों में सर्वप्रकारेण लगे रहें।
डॉ0 देवव्रत आचार्य,
प्राचार्य, गुरुकुल कुरुक्षेत्र
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