कवि कलम जब काज करेगी।
हिंदी जग पर राज करेगी।
गाँधी जैसे नेताओं ने, पाल-पोषकर इसे उभारा।
प्रेमचंद-जयशंकर वर्मा, जैसों ने रंगों से संवारा।
कवि भारतेंदु हरिचंद ने, जय हिंदी का दिया था नारा।
कविगण की अमर कलम तो, अपने गुण पर नाज करेगी।
हिंदी जग पर राज करेगी।
दुख तो घना तब होता है, कवि काव्य गोष्ठी में जाते।
करूं उत्थान राष्ट्रभाषाा का, बड़ी-बड़ी कसमें हैं खाते।
देखा घर में निज लालो को, अंग्रेजी की सीख सिखाते।
सरस-मधुर भाषा अपनी का, नहीं उन्हें वे ज्ञान कराते।
हिंदीमयी कुटी ही अपनी, हिंदी को सरताज करेगी।
हिंदी जग पर राज करेगी।
पश्चिम की भाषा में भाई, नैतिकता में थाह नहीं है।
पर अपनी हिंदी में देखो, अवगुण की इक राह नहीं है।
छोड़ो उक्ति पश्चिम की, क्या निज गीता में ज्ञान नहीं है।
सोचो और मनन कर जानो, क्या हिंदी में सम्मान नहीं है!
गर तुम मान करो हिंदी का, तभी दृढ़ आगाज करेगी।
हिंदी जग पर राज करेगी।
हिदी पढ़ो, पढ़ाओ हिंदी, ये माता के भाल की बिंदी।
सोचो हिंदी, बोलो हिंदी, मान करो तुम भी हो हिंदी।
गर चाहते हो देश एक हो, जन-जन फिर अपनाओ हिंदी।
मान बढेगा तभी विश्व में, व्यापक स्तर फैलाओं हिंदी।
भारतवासी भाव भरे जब, हिंदी जग सरसाज करेगी।
हिंदी जग पर राज करेगी।
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