पशु-पक्षियों पर अत्याचार न करें


आज का मनुष्य अभक्ष्य पदार्थों को खा खाकर इस पेट को कब्रिस्तान बनाने पर तुला हुआ है जो कि घोर चिन्ता का विषय है।
प्रकाशचन्द्र अग्रवाल
                मानव का जीवन अमूल्य है। यह जीवन हमें बार-बार नहीं मिलता, हमारे पूर्वजन्मों के सुसंस्कारों के द्वारा हमें यह उत्तम मानव चोला प्राप्त हुआ है। पुनर्जन्म एक सत्य सिद्धान्त है। यह वेदादि शास्त्रों एवं अन्य धार्मिक सत्य ग्रंथों के अध्ययन से विदित होता है। हमारे वर्तमान कर्मों के आधार पर ही हमारे भविष्य का निर्माण होता है।
                परमपिता परमात्मा ने मानव को बुद्धि एवं विवेक दिया है- इसके द्वारा हम अच्छे एवं बुरे सभी प्रकार के कार्य कर सकते हैं, इसका सही प्रयोग करना ही मानवता का परिचायक है।
                ईश्वर ने ज्ञान एवं बुद्धि के अतिरिक्त जीविका हेतु खाने एवं तरल पदार्थ के रूप में शक्ति प्रदान करने वाले अनेक प्रकार के स्वादिष्ट फल मेवे एवं साग सब्जी तथा अनेक प्रकार के अन्नों का निर्माण किया है। हमें यह सदैव ध्यान देना चाहिए कि किस वस्तु को ग्रहण करके हम ईश्वर प्रदत्त इस शरीर को सुन्दर, सुडौल एवं नीरोग रख सकते हैं।
                ईश्वर ने जीव जन्तुओं एवं पशु-पक्षियों को जीविका हेतु खाने योग्य पदार्थ बनाए हैं, वे उसके बनाये नियमों का प्राय: उल्लंघन नहीं करते। शाकाहारी पशु पक्षी एवं जीव जन्तु मासांहार अथवा अन्य निर्बल प्राणियों को मारकर नहीं खाते, वे ईश्वर के बनाये नियम पर सदैव अटल रहते हैं। उन्हें भक्ष्याभक्ष्य का अवश्य ज्ञान होता है। पशु-पक्षी बेचारे अनबोल होते हैं। ईश्वर ने उन्हें बोलने की शक्ति नहीं दी। वे अपनी भाषा में अपने साथियों को दु:ख एवं कष्ट कहते होंगे। हम उनकी भाषा के दुख एवं कष्ट को कुछ हद तक समझकर भी अनदेखा कर देते हैं।
                हमारा परम कर्तव्य है कि मानव मात्र के हित चिन्तक पशु पक्षियों की सदैव रक्षा करें। उन्हें मारकर अथवा कष्ट देकर उनके साथ अत्याचार करके उनके माँस के द्वारा हम अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहें तो यह हमारी नादानी ही कही जायेगी क्योंकि उन प्राणियों का वध करके हम कभी भी सुखी, सम्पन्न एवं स्वस्थ नहीं रह सकते।
                परन्तु यह जानकर बड़ा दु:ख होता है कि मांसाहारियों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। यह भगवान श्री राम एवं गोभक्त श्री कृष्ण का देश है। इस देश के महान पूर्वजों पर हमें गर्व होता है, वे इस पवित्र पावन भूमि में जन्म लेकर इस संसार से चले गये, परन्तु उनके विचारों एवं गुणों को हम सदैव याद करते हैं। पर्वों एवं त्योहारों के अवसर पर हम उनके श्रेष्ठ गुणों की समीक्षा करते रहते हैं। उनके श्रेष्ठ आचरण के कारण इस भूमि को स्वर्णभूमि कहा जाता था। यहाँ पर बड़े-बड़े ऋषि, महर्षि एवं विद्वानों का अवतरण हुआ, तभी हमारा भारत जगद्गुरु कहा गया।
                महाभारत काल तक इस देश के शासन की बागडोर आर्यों के हाथों में थी। तब इस देश में कोई चोर, लुटेरा अथवा अभक्ष्य पदार्थ खाने वाला नहीं था। महाभारत में ऐसा अनर्थ हुआ कि उस युद्ध में अनेक विद्वान, योगी, महापुरुष मारे गए। यह देश स्वर्ण भूमि से नरक भूमि के रूप में परिणत होता चला गया। शासन व्यवस्था भी छिन्न भिन्न हो गई और हमारे सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन में भी अनेक प्रकार की न्यूनताएं आ गईं।
                आज का मनुष्य अभक्ष्य पदार्थों को खा खाकर इस पेट को कब्रिस्तान बनाने पर तुला हुआ है जो कि घोर चिन्ता का विषय है। हमें खानपान में सदैव सचेत रहना चाहिए। यह मानव जीवन बड़े सुकर्मों से हमें मिला है। इस मानव शरीर को कभी भी नरक की ओर न जाने दें। प्राणिमात्र की भलाई के लिए इसका उपयोग करें। अपनी जीभ के स्वाद के लिए संसार के उपकारी पशु पक्षियों को मारकर खाना मनुष्यता तो कदापि नहीं है।

(शान्तिधर्मी से साभार)

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